नरेश दीक्षित (यह मेरे निजी विचार है )
भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप की पूव॔ चेतावनी को सरकार द्वारा नज़र अंदाज़ करने के कारण आज देश की 1•25 करोड़ लोगों को लाक डाउन के नाम पर बिना किसी तैयारी के घरों में लाक कर दिया गया है? लेकिन अभी तक कोई ऐसा मामला संक्रमण का नहीं आया है जो भारत के लोगों में स्वतः फैला हो, यह वह है जो विदेशों से संक्रमित होकर आने वाले नागरिकों द्वारा फैलाया जा रहा है । अब तो सरकार ने भी स्वीकार किया हैं कि पिछले दो माह में भारत में 15 लाख लोग आये थे ? जिनकी संक्रमण की जांच नहीं हुई थी ? सरकार जब चेती तो, अब यह ढूंडे नहीं मिल रहे हैं? सोचिए सरकार कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए कितनी गंभीर थी ?
सरकार ने यदि उसी समय अपनी समस्त सीमाओं को सील कर दिया होता और बिना सघंन जांच के वगैर देश में प्रवेश करने न दिया होता तो प्रधानमंत्री को 25 मार्च रात्रि 8 बजे देश को 21 दिन के लिए लाक डाउन में न डालना पड़ता । सरकार का हाल वही हुआ कि ‘धोबी से कुछ बोल न पाये गदहे के कांन उमेठै’। क्या भारत ने लाक डाउन करने में देरी नहीं की?
भारत सरकार ने हाइवे, नेशनल हाईवे, सार्वजनिक परिवहन, निजी वाहन, रेल गाडियाँ, हवाई जहाजों का संचालन बंद कर देने से केरल, महाराष्ट्र, गुजरात मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा,जम्मू कश्मीर,बंगाल इत्यादि राज्यों के बड़े शहरों में काम करने वाले हजारों दिहाडी मजदूर फंस गए है। दिल्ली में भी लाखों मजदूर फंसे है जो दर-दर भटक रहे हैं। वैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री ने खाने की मुफ्त सुबिधा उपलब्ध करा रहे हैं फिर भी मजदूर इतनें भयभीत है कि वह हर हालत में अपने-अपने घरों को लौटना चाहते हैं।
देश के दर्जनों हाइवे पर अपने छोटे-छोटे बच्चों को गोदी,कंधों पर बैठाकर पैदल ही निकल पड़े हैं । दुसरी ओर सरकार कह रही हैं जो जहाँ है वहीं रूक जाएं लेकिन कहां रूक जायें? जब फैक्ट्रियां बन्द हो गई है काम बन्द है उनके पास अपने घर नहीं है, पैसा भी नहीं है, ऐसे में वह क्या करें? यह गरीब दिहाडी मजदूर सैकड़ों मील दूर अपने घरों को कैसे पहुंचेगें उनके खाने पीने दवा इत्यादि की कौन व्यवस्था करेगा इस पर सरकार खामोश हैं । वैसे इस विश्व महामारी से देश की जनता को बचाने का प्रयास ठीक है।
लेकिन लाखों उन मजदूरों का क्या होगा जो देश के बड़े-बड़े शहरों में फंस गए हैं। सरकार उनके घर वापसी सुरक्षित क्यों नहीं करती? जब विदेशों में संक्रमित अपने नागरिकों के लिए प्लेन भेज कर निकाला जा सकता हैं तो देश के विभिन्न शहरों में फंसे मजदूरों को क्यों नहीं उनके घरों को भेज जा रहा हैं? देश के ग्रामीण क्षेत्रों की हालत संक्रमण से नहीं बल्कि रोजमर्रा की आवश्यक चीजों की आपूर्ति बन्द होने से हैं और जो छोटी-छोटी दुकानें खुलती भी है उन्हे पुलिस डंडो के बल बन्द करा देती है जबकि शहरों में दूध,सब्जी,फल,परचून मेडिकल स्टोर खुल रहे आखिर सरकार की यह दौहरी नीति क्यों?
भारत सरकार ने 1•70 लाख करोड़ रूपये का आर्थिक पैकेज का एलान किया है जिसमें किसानों,मजदूरों,विकलांगो,वृद्धों,महिलाओं इत्यादि को सहायता की घोषणा की है जो मोदी सरकार का विलंब से उठाया गया सराहनीय कदम है। प्रदेश के मुखिया योगी ने भी घोषणा की है कि प्रदेश का कोई भी नागरिक भूखों नहीं मरने दिया जायेगा। जिला प्रशासन को आदेश दिए है कि जो मजदूर सड़कों से पैदल अपने घरों की ओर जा रहें हैं उनके खाने, पीने,दवाइयों की व्यवस्था करेंगे और उन्हे सुगमतापूर्वक घरों को भेजेगें यह योगी सरकार का भी प्रशंसनीय क़दम हैं।
वहीं वलबीर पुंज जैसे भाजपा सांसद ऐसे मजदूरों के पलायन पर कह रहे हैं यह सब पिकनिक मनाने जा रहें? कुछ अपने को बुद्धि जीवी कहने वाले सोशल मीडिया पर और टीवी चैनलों पर बैठ कर देश की 65 प्रतिशत ग्रामीण जनता और रोजी-रोटी के लिए शहरों में आए ग्रामीण मजदूरों को प्रबचन देकर खिल्ली उड़ा रहे हैं यह कैसी संवेदन शीलता है समाज के चंद्र भद्र लोगों की?