Sign in
Sign in
Recover your password.
A password will be e-mailed to you.
वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ,
एवं भू0पू0 क्षेत्रीय आयुर्वेदिक
एवं यूनानी अधिकारी,
लखनऊ।
सत्वावजय आयुर्वेद की एक चिकित्सा विधि है, जो मन पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है। मन ही स्वास्थ्य का आधार है। मन बहुत शक्तिशाली होता है, जिसने इस पर काबू पा लिया, वह सारे कष्टों यानी रोगों से दूर रहता है। हमारा मनोबल ही हमें हर संकट से उबारता है, जो मन से हार नहीं मानता उसे कोई शक्ति परास्त नहीं कर सकती। कहा गया है- मन के हारे-हार है, मन के जीते-जीत। आज पाश्चात्य सभ्यता के निरन्तर विकास के कारण मनुष्य प्रकृति से दूर होता जा रहा है एवं इस यांत्रिक युग में ज्यादातर लोग अशांत एवं दुखी हैं और उनका मन किसी न किसी वजह से व्यथित है।
मन की स्थिति असमान्य होने के कारण एक हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति भी रोगी की तरह दिखता है अर्थात मन की प्रसन्नता पर ही शरीर में सुख की अनुभूति होती है। इसके विपरीत मन यदि दुःखी है तो स्वस्थ व्यक्ति भी अपने को रोगी होने से अधिक कष्ट में अपने को पाता है। इस प्रकार स्वस्थ मन ही हमारे आरोग्य पूर्ण जीवन का मूल है, इसलिए यदि मन को स्वस्थ रखना है तो तन को भी स्वस्थ रखना होगा। कहा जाता है कि ‘स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन निवास करता है’ अतः शरीर को स्वस्थ रखना आवश्यक है।
आयुर्वेद में सत्व (मन) आत्मा एवं शरीर के संयोग को ही जीव माना गया है अर्थात् इन तीनों के संयोग से हम जीवित हैं अतएव इन तीनों के संतुलित होने पर हमें स्वास्थ्य मिलेगा। हमारा शरीर-आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी इन पंच महांभूत तत्वों से बना है। यह शरीर हमें दिखता है और इसे हम स्पर्श कर सकते हैं। रोग होने पर उसका उपचार कर ठीक कर सकते हैं। यहां तक शरीर का शोधन भी पंचकर्म चिकित्सा से कर सकते हैं किन्तु मन और आत्मा का नहीं।
आयुर्वेद मानता है कि आत्मा और शरीर की इन्द्रियों के उपस्थित रहने पर जब तक मन सक्रिय नहीं होता है तब तक इन्द्रियों के कर्म का ज्ञान संभव नही है। मनुष्य को सभी ज्ञान-सुखात्मक या दुःखात्मक मन द्वारा होते हैं अतएव शरीर रूपी गाड़ी को चलाने वाला ड्राइवर मन ही है। इसलिए इस मन पर ही नियंत्रण की बात मुख्य है। रोग 2 प्रकार के होते हैं (1) शारीरिक एवं (2) मानसिक। इन दोनोें प्रकार के रोगों को ठीक करने हेतु 3 चिकित्साविधियों का वर्णन हैः- 1. दैवव्यापाश्रय चिकित्सा 2. युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा 3. सत्वावजय चिकित्सा
Related Posts
शारीरिक कष्टों को दूर करने हेतु दैवव्यापाश्रय एवं युक्तिव्यापाश्रय चिकित्सा विधियों का प्रयोग किया जाता है वहीं सत्व यानी मन पर विजय पाना ही सत्वावजय चिकित्सा है। मन के 3 गुण होते हैं-सत्व, रज और तम। सत्व ही मन का असली गुण है, जो जन्म के समय पर होता है उस समय मन पवित्र होता है कोई क्रोध, लालच, लोभ आदि नहीं होते। उस समय यदि गुस्सा भी आता है तो थोड़ी देर में शांत हो जाएगा और यही हमारा वास्तविक स्वभाव है।
उम्र के बढ़ने के साथ-साथ हम पर रज और तम के आवरण का प्रभाव दिखाई देने लगता है, इन रज और तम गुणों के कारण काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईष्र्या, मान, मद, शोक, चिन्ता, उद्वेग एवं भय आदि विकार उत्पन्न होनें लगते हैं जिससे हमारा सात्विक मन अक्रान्त होता है और वह विकृत होने लगता है जिससे शारीरिक दोष- वात, पित्त, कफ का भी दूषण होने लगता है, जिससे अनेक जटिल मनः रोग उत्पन्न होते हैं।
सत्व गुण प्रधान मन को स्थिर रखने हेतु रज और तम के आवरण को हटाना ही सत्वावजय चिकित्सा का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। यह उपचार की वह विधि है, जिसके द्वारा मन पर नियमन एवं नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है अर्थात मन को अहित अर्थों की ओर जाने से रोकना है। आधुनिक में इसे साइको थैरेपी कहते है। रोगी के धी (बुद्धि), धृति (धैर्य) तथा स्मृति (स्मरण शक्ति) को साम्यावस्था में लाने का प्रयत्न किया जाता है, जिससे व्यक्ति का मनोबल ऊंचा हो सके और बिना किसी औषधि के तनाव, व्यवहार, डर, चिंता, फोबिया, पैनिक डिसआर्डर एवं गुस्से को कन्ट्रोल करने तथा उसके पर्सनालिटी डेवलेपमेंट (व्यक्तित्व विकास) एवं उसमें सकारात्मक विचारों को उन्नत करने के लिए प्रेरित किया जाता है।
हमारा मन चेतन (conscious) और अवचेतन (sub conscious) दो भागों में बटा है चेतन मन 10 प्रतिशत और अवचेतन मन 90 प्रतिशत होता है। यही अवचेतन मन ही सबसे पावरफुल होता है जो व्यक्ति को ऊंचाई तक ले जाता है। यह मेमोरी बैंक है, जो हमारे जीवन के सभी अनुभवों का खजाना है-संस्कार, आदतें, दृष्टिकोण एवं ज्ञान का भण्डार गृह।
किस परिस्थिति में हमें क्या करना हे उसका आदेश अवचेतन मन ही देता है यदि यह अवचेतन मन रज और तम के विकारों से ग्रस्त है और उसमें यदि नकारात्मक बातें स्टोर हुईं हैं जो आपको तथा समाज को परेशानी में डाल रहीं हैं तो उन्हें सत्वावजय चिकित्सा के जरिये बदला जा सकता है तथा रज और तम के विकारों को दूर किया जाता है। आयुर्वेद के सिद्धान्त ‘निदान परिवर्जनम’ के अनुसार कारण को दूर करते हैं और मनोबल को बढ़ाया जाता है। मन की शक्ति ही हमें कठिन से कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करने की हिम्मत प्रदान करती है चाहें वह किसी रोग के रूप में हो या फिर कोई अन्य विपत्ति।
Tevar Times is the best news website. It provides news from many areas. We are displaying class-wise news to create news type differences according to the user's interest.