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देश की बैंकों का 74 प्रतिशत पैसा, कॉर्पोरेट परिवारों ने दबा रखा है?

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नरेश दीक्षित (संपादक समर विचार)


एक जन सूचना के तहत भारतीय रिजर्व बैंक ने बताया है कि पिछले दो वर्षो के दौरान वित्तीय वर्ष 2017-18 में बैको के साथ फ्रॉड के मामलो में 19 %की वृध्दि हुई है जिसमें एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रकम शामिल है इतना बड़ी रकम फंसने के बाद रिजर्व बैंक कह रही है कि तथ्यो और परिस्थितियों के अनुसार काय॔वाही की जा रही है यह कितना बचकाना जवाब है?
लेकिन वास्तविक तथ्य क्या है ? वष॔ 2015 में क्रेडिट सुइसे जैसे अन्तरराष्ट्रीय स्रोतो से खबर आई थी कि भारतीय बैको ने जो कज॔ दिए है और जिनकी वसूली नही हो पा रही है जिसे गैर निष्पादित परिसम्पत्ति या एन पी ए कहा जाता है इसमें मुख्यतः अम्बानी, वेदान्ता, एस्सार, अडानी, जेपी ,जिन्दल, जीएमआर, लानको, विडियोकॉन, जी व्ही के इत्यादि है।

यह रकम 4,70,085 करोड़ (73,33% ) है। जबकि देश के अन्न दाता किसानो पर 57,021 करोड़ मात्र 8,89 % एन पी ए है। इसी प्रकार से सर्विस सेक्टर में 13,21 फीसदी , रिटेल सेक्टर पर 3,71 फीसदी है। माच॔ 2014 में भारत की बैको का एन पी ए 241000 करोड़ रुपए था जो आर बी आई के अनुसार 31 मार्च 2018 तक एन पी ए बढ़ कर 641005 करोड़ रुपए हो गया है।
विगत दो वर्षो के दौरान मौजूदा मोदी सरकार के तहत बैकों के साथ फ्रॉड के लगातार बढते रूझान के, राजनैतिक सत्ता की मिली भगत से ही कार्पोरेट ठगों द्वारा इस तरह लूटे गए सार्वजनिक धन की मात्रा में निश्चित रूप से और इजाफा हुआ होगा। बैकों के साथ ठगी करने वाले इन कार्पोरेट घरानो के नाम उजागर करने में केन्द्र सरकार निरन्तर पर्दा क्यों डाल रही है? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है जिस पर सार्वजनिक रूप से च॔चा होनी चाहिए।
मोदी सरकार गला फाड़कर कहती है कि देश के गैर जरूरी कानूनो को समाप्त कर दिया गया है, फिर आर बी आई एक्ट 1948 के प्रावधान की आड में जहां इन बड़े ठगों के नाम को गुप्त रखा जाता है वही छोटी मछलियों का नाम सार्वजनिक किया जाता है। देश की बैकों के साथ कितनी बड़ी ठगी की जा रही है यह जानने के लिए क्या हमे एक बार फिर अन्तरराष्ट्रीय एजेन्सियों पर ही निर्भर रहना पडे़गा?

वैसे अब बैंक कम॔चारी संगठन भी कह रहे है कि बढ़ रहे कार्पोरेट एनपीए के लिए केंद्र सरकार ही दोषी है उनका कहना है कि बैकों के जितने बड़े अधिकारी होते है उनका चयन सरकार ही करती और यही अधिकारी बड़े कार्पोरेट लोन भी करते है। उनका कहना है कि सरकार ही एन पी ए खुद कराती है और ठीकरा बैकों पर फोड़ती है?

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