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पांच बच्चों से कारवां हुआ था शुरू, आज है हजारों के गुरु

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शिक्षक दिवस पर टीटाइम्स ग्रुप के सम्वाददाता स्पर्श दीक्षित की रिपोर्ट

अक्सर शिक्षक का जिक्र होते ही हमारे दिमाग में उन टीचरों या प्रोफ़ेसरो की एक धुंदली तस्वीर साफ सी होती दिखती है जिन्होने हमें कभी शिक्षित किया है।
हमारा अधिकांश समय घर एवम शिक्षण संस्थानों में बीतता है जिसके कारण उन जगहो से हमारी असंख्य यादें जुड़ जाती और जब कई वर्षों बाद दोबारा हम उन जगाहो पे कदम रखते है तो शायद वास्तविकता धीरे ओझल होने लगती है, छलछलाई आँखें, बोझिल स्वर एवम हृदय में कम्पन पैदा करने वाली वो यादे जो अपने मित्रों के संग शायद बीत चुकी है, और जब उन अश्रुपूरित नैनो में आंसू समेटे इतिहास में कुछ 10-15 वर्ष पीछे जाने की कोशिश कर रहे होते है तब शायद हमारा ह्रदय सिर्फ एवम नयन सिर्फ शिक्षकों को ढूंढ़ रहे होते है, और फिर नजर पड़ती है उन डेस्क एवम चेयरों पर जिन पर बैठ कर शायद हमने अपने जीवन के सबसे सुखद पलों को बिताया है, और इसी कड़ी में हमें दिखने लगता है शिक्षकों का अमूल्य योगदान।
एक अबोध बालक या बालिका जब मात्र 4 वर्ष की आयु में स्कूल की ओर रोते हुए जाती जय तो शायद उन कमल जैसे कोमल हाथों को थामने वाली एक शिक्षिका ही होती है,शायद ऐसे हाथ जिंहोंने कठोर समाजिक दामनो को नहीं थामा होता है।
वर्तमान की बात करें तो आज कल की प्रैक्टिकल जिंदगी में शिक्षा एक बिजनेस बन चुका है जिसका उदहारण है लाखों कोचिंग संस्थान जो बहुत बड़ी मात्रा में पैसा ले लेते है लेकिन शायद आज भी कुछ ऐसे लोग मौजूद है जिन्होंने इन्सानियत एवम आत्मीयता को जीवित रखा है।पढ़ाई शिक्षा के क्षेत्र तक ही सीमित नही है, अगर मैदान में योगदान की बात करें तो शायद वो शिक्षक जो दिन खून पसीना बहा कर एक व्यक्ति को किसी लायक बनाता है उसका भी योगदान किसी से कम नहीं होता जैसे उदहारण के लिये श्री रमाकांत आचरेकर जी जिन्होंने सचिन तेंदुलकर को विश्व क्रिकेट के इतिहास में सर्वोच्च मुकाम तक पहुंचा दिया।
इसी कड़ी में एक नाम और जुड़ जाता है और वो है लखनऊ के युवा ह्रदय सम्राट श्री अभय तिवारी जी का।

ऐसे की शुरुवात:

शुरू में मात्र 5 बच्चों को फिजिकल ट्रेनिंग देने वाले श्री अभय बताते है की वैसे तो उन्होंने शुरूवाती दौर में सिर्फ पांच बच्चों को ट्रेंनिंग दी थी और सौभाग्य से उन सभी बच्चों का सेलेकशन हो गया जिस से लोगों का उनके समर्पण के प्रति झुकाव बढ़ गया।

फिक्स है शेड्यूल:

श्री अभय से बात करने पे पता चला की प्रतिदिन वे ठीक 5:00 बजे सुबह ग्राउंड पहुँच जाते है और उनकी ट्रेंनिंग लगभग 8 बजे तक चलती है।
वक्त बीतता गया और कारवां बढ़ता गया:
मात्र पांच बच्चों से शुरुवात करने वाले अभय सर के पास आज हजारों बच्चे अलग अलग राज्यों से ट्रेनिंग के लिये पहुंचते है जो शायद एक स्तब्धता का विषय है।

गेरेंटीड है प्रोग्राम:

आज के जमाने में जहां किसी भी चीज की गेरेंटी नहीं है वहां अभय तिवारी शारीरिक रूप से सभी व्यक्तियो की गेरेंटी लेते है।

नहीं है कोई फीस:

अभय तिवारी जी की ख़ासियत यह है की वे किसी भी बच्चे से फीस नहीं लेते। पुलिस, आर्मी एव्म अन्य शारीरिक परीक्षाओ में हजारों अभीयर्थीयो का चयन कराने वाले अभय सर का मानना है की शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है और पैसे को बीच में लाकर वे इस अधिकार से बच्चों को वंचित नहीं करना चाहते।
शायद यही है शिक्षक की असली परिभाषा। आज जहां शिक्षा के सभी क्षेत्रों में पैसे को लेकर इतनी लूट मार मची है उसको बावजूद अभय सर को देखते हुए लगता है की शायद आज भी कुछ ऐसे लोग है शिक्षक की परिभाषा को सार्थक बनाते है।
शिक्षक दिवस पर ऐसे शिक्षकों टी टाइम्स ग्रुप का सलाम
2 Comments
  1. vaibhav says

    What a wonderful content has been written by Sparsh

  2. Vaibhav says

    What a wonderful content has been written by Sparsh Dixit

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