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सेवानिवृत्त के पूर्व, चीफ जस्टिस दीपक कुमार मिश्रा की पीठ के फैसले, समाज में चर्चा का विषय बने रहेंगे!

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नरेश दीक्षित (संपादक समर विचार)

कुछ समय से सर्वोच्च न्यायालय के जो फैसले चीफ जस्टिस श्री दीपक कुमार मिश्रा की पीठ के आए है उसने जनता की आवाज को गलत बताने का काम किया है। बात चाहे धारा 377 में समलैंगिकता की छूट की बात करें या आधार विधेयक को मनी बिल पारित कराने को संविधान के साथ धोखा बताए जाने की अथवा व्यभिचार को अपराध करार देने वाली धारा 477 को असंवैधानिक करार देकर खारिज करने की। पदोन्नति में आरक्षण लागू करने का रास्ता ऐसे तमाम मामलो में जो फैसले आए है उससे भारतीय समाज काफी बड़ा वर्ग कतई संतुष्ट नही दिख रहा है।
भारतीय समाज को तो यह भी समझ के परे है कि समलैंगिकता को यौन संबंध स्थापित करने की औपचारिक रूप से इजाजत दिए जाने के बाद अब पति-पत्नी को कही भी और किसी के साथ स्वच्छंद तरीके से शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत देने के पीछे आखिर क्या मानसिकता हो सकती है। धारा 497 को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिए जाने के बाद शादी-ब्याह का महत्व अब क्या रह जायेगा? इस फैसले से सब को लाइसेंस मिल गया है शादी कीजिए और अवैध संबंध भी रखिए कोई आपका कुछ विगाड नही सकता।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खण्ड पीठ का कहना है कि यह कानून शादी शुदा महिला की गरिमा, सेक्सुअल आजादी और उसकी पंसद के अधिकार का उल्लंघन करता है सेक्सुअल च्वाइस सबका अधिकार है। इस फैसले के बाद कानूनी व संवैधानिक तौर पर व्यभिचार की आखिर क्या परिभाषा होगी?
इन फैसलो को पूरी तरह से अमल में लाए जाने के बाद समाज की कैसी तस्वीर सामने आएगी इस पर विचार करना भी यदि पीठ ने जरूरी नही समझा तो निश्चित ही भावी दुष्परिणामो के लिए किसी अन्य को दोष देना कतई सही नही होगा। अब नई व्यवस्था के तहत यौन शुचिता का कोई मतलब नही रह गया है। सुप्रीम कोर्ट अब आई पी सी में जितने भी कानून ब्रिटिश काल के है उन सभी को समाप्त कर नई आई पी सी लिखने के लिए भी फैसला कर देना चाहिए जो कानून भारतीय समाज के अनुकूल न हो?

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