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बेगुनाह जनता का खून बहाने वाले देशो को क्या अंतरराष्ट्रीय कानून दंड दे पायेगा?

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नरेश दीक्षित (संपादक समर विचार)

विश्व की शांति एवं एक दुसरे राष्ट्रो के आपसी विवादो को शांति पूर्ण ढंग से हल के लिए बनाया गया अंतरराष्ट्रीय कानून एवं उनकी अदालत अमेरिका, ब्रिटेन रूस और इनके ही कुछ पिछलग्गू देश विश्व में अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए संगठित होकर बेगुनाह जनता का खून बहाते है और शक के आधार पर देशों को तबाही के कगार पर खड़ा कर देते है।
इसी शक के आधार पर पश्चिम एशिया का एक विकसित राष्ट्र इराक पर जनसंहार के रासायनिक हथियार होने का वे बुनियाद आरोप गढ़ कर अमरीका और ब्रिटेन के गठबंधन सेनाओ ने अन्तरराष्ट्रीय कानूनो को ताक पर रख कर एक आधुनिक एवं विकसित मुस्लिम राष्ट्र को, जिसने अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशो की गुलामी स्वीकार नही की।
इराक पर सैन्य कार्रवाई करते हुए 19 माच॔ 2003 को हमला बोल दिया जो 1 मई 2003 तक चला। इस दौरान गठबंधन की सेनाओ ने इराक पर घातक क्रूज मिसाइल, और गठबंधन सेनाओ के नवनिर्मित हथियारो के बल पर राजधानी बगदाद, बसरा सहित देश के सभी बड़े शहरो को राख के ढेर में तब्दील कर दिया गया। इन हमलो में हजारो की संख्या में पुरुष, महिलाएँ व बच्चे मारे गए थे तथा लाखो लोग बेघर हुए थे।
इनका दोष सिर्फ यह था कि यह इराक के नागरिक थे और उनका राष्ट्र पति सद्दाम हुसैन था। 31 दिन के युद्ध में इराक को पुरी तरह से बर्बाद कर दिया गया। सद्दाम हुसैन के महल को तहस नहस कर दिया गया, अधिकांश सैनिक कमांडरो को मार दिया गया या बंधक बना लिया गया इराक की सेना ने भी गठबंधन सेनाओ के सामने हथियार डाल दिए।
इराक के राष्ट्र पति अपनी जान बचाने के लिए एक सुरक्षित बंकर में छुप गए थे। उन्हे भी युद्ध के सभी सबूत मिटाने के लिए अमेरिका व बिट्रेन ने खोज कर मार दिया था। जिन इल्जामो को लगाकर अमेरिका ब्रिटेन ने इराक पर सैन्य कार्रवाई की वे सभी इल्जाम झूठे थे। जंग के बाद एक भी स्थान पर रासायनिक या परमाणु हथियार नही मिले। इराक जंग के मामले में अमेरिका – ब्रिटेन तथा अंतरराष्ट्रीय मीडिया दुनिया को गुमराह करते रहे।
जंग का असली मकसद इराक के तेल संसाधनो पर कब्जा करना था तथा खाड़ी के धनवान देश को मात्र तहस नहस करना था। इराक में जब जंग शुरू हुई तब से लेकर आज तक इराक स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय सत्ता का केंद्र बना हुआ है। यदि इराक में युद्ध न हुआ होता तो आज इराक में आई एस आई जैसा आतंकी संगठन न खड़ा होता जो विश्व के तमाम देशो के लिए खतरा बना हुआ है। इराक युद्ध की बरवादी वहाँ की बेगुनाह जनता भुगत रही है।
लेकिन युद्ध के मुख्य आरोपी ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर व अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश और उनके सहयोगी देशो के विरुद्ध अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमा चलना चाहिए था और युद्ध अपराध के लिए दंड मिलना चाहिए था । लेकिन यह संस्था ऐसे देशो के खिलाफ काय॔वाही की हिम्मत नही जुटा पाई यह सिर्फ छोटे देशो को अंतरराष्ट्रीय कानून का पाठ पढती है?
इराक की जनता युद्ध अपराध के दोषी देशो को शायद ही कभी माफ करेगी जिन देशों ने हंसती – खेलती इराक की जनता को नर्क से बत्तर जिन्दगी जीने पर मजबूर कर दिया हो? आज विश्व के तमाम देश अमेरिका की हबस का शिकार बन कर इराक, ईरान, सीरिया, जार्डन,  अफगानिस्तान जैसे देश कराह रहे है। अंतरराष्ट्रीय संगठन भी इनकी मदद करने के लिए लाचार है। ये सभी संगठन विश्व की बड़ी महाशक्तियों के गुलाम बन गए है, और हो भी क्यो न यह संगठन उन्ही के पैसो से और उन्ही के देशो में ही तो चल रहे है? ( प्रसंग वश)

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