नरेश दीक्षित (संपादक- समर विचार)
पचास साल तक देश की सत्ता का ख्वाब देखने वाले छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, मणिपुर विधानसभाओं के परिणाम आते ही सपने धडाम हो गए हैं। राष्ट्रीय प्रवक्ताओं की जहर उगलती तोपें शांति हो गई है। नेताओं के चेहरों की रंगत गायब हो गई है, पार्टी 2019 के चुनाव की तैयारी के लिए चिंतन-मंथन में जुट गई है। हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा का विरोध शुरू हो गया है । मोदी-शाह की जोड़ी का जलवा वोटरों ने धुवां कर दिया है।
अब देश के युवा वोटरों को काम चाहिए जुमलेबाजी नहीं। भाजपा का हिन्दुत्व नारा बेदम होता जा रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के जोशीले हिंदुत्व के भाषण अब अप्रासंगिक हो गए हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में जहाँ-जहाँ भी भाषण उन्होने दिए सभी सीटों पर प्रत्याशी हार गए । भाजपा का समाज को बांटने वाले मुद्दे फेल हो गए हैं। प्रचार की चकाचौंध और झूठे वादो की झड़ी लगाकर सत्ता एक बार तो प्राप्त की जा सकती है, लेकिन बार-बार नहीं।