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आर्थिक आरक्षण मोदी सरकार का एक और जुमला!

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नरेश दीक्षित

भाजपा नेतृत्व वाली एन डी ए की सरकार ने ऊंची जातियों के आर्थिक दृष्टि से पिछड़े परिवारों के लिए 10% आरक्षण की घोषणा की है। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा विधेयक को स्वीकृत करने के बाद इसे संसद ने तुरंत पास कर दिया तथा राष्ट्र पति की स्वीकृति भी प्राप्त हो गयी।
यूथ फॉर इक्वलिटी नामक संस्था जो आरक्षण की अवधारणा का इस आधार पर विरोध करती आ रही हैं कि किसी भी काम को हासिल करने का एकमात्र आधार योग्यता होना चाहिए, ने इस निर्णनय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
दिलचस्प यह है कि एक राजनैतिक दल के रूप में भाजपा आरक्षण की परिकल्पना की ही विरोधी रही हैं। 1980 में दलितों के लिए कोटा निर्धारित करने के मुद्दे को लेकर आरक्षण विरोधी दंगे हुए थे जिनके दौरान दलितों के खिलाफ हिंसा हुई थी। इसी तरह 1985 में पदोन्नति में आरक्षण के सिद्धांत के विरोध में हिंसा का एक और सिलसिला चला था।
अभी आरक्षण की उच्चतम सीमा 50% है जो इस 10% आरक्षण के साथ 60% हो जायेगी। यह बढ़ोत्तरी न्याय पालिका को स्वीकार होगी या नही यह अभी देखा जाना बाकी है। परन्तु 10% आरक्षण के लिए पात्रता की जो शर्ते निर्धारित की गई है वे चकित कर देने वाली है।
इनके अनुसार 8 लाख रुपये तक की वार्षिक आय वाले व्यक्ति और शहरों में 1000 वर्ग फुट तक के क्षेत्रफल के मकान और गांवों में 5 एकड़ तक की जमीन के मालिक आरक्षण के पात्र होगें। इस लिहाज से तो देश की 90 % आबादी इस श्रेणी में आ जाएगी।
इस परिभाषा से सकारात्मक भेदभाव के सिद्धांत जो कि आरक्षण की ब्यवस्था का आधार है, की चालें हिल जायेंगी और ऊंची जातियों के गरीबों को कोई लाभ नहीं होगा।
यह भी दिलचस्प है कि जहाँ आरक्षण को लेकर इतनी हायतौबा मची हुई हैं वही सरकारी विभागों में हजारों पद खाली पड़े हुए हैं और महत्वपूर्ण कार्यो की आउटसोर्सिंग की जा रही है।
इस कदम से गरीबों को कोई लाभ नहीं मिलेगा कयोंकि नौकरियां उपलब्ध ही नहीं है। इसके कारण युवाओं में भारी आक्रोश और कुंठा है। जब खाली पद भरे ही नहीं जा रहे हैं और न ही नए पदों का सृजन हो रहा है तब आरक्षण का क्या अर्थ है। क्या यह आर्थिक रूप से पिछड़ो को झुनझुना मात्र नहीं है? समाज में आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गो के लिए आरक्षण की ब्यवस्था मोदी सरकार का एक और जुमला है।
इससे ऊंची जातियों के गरीबों को फायदा होने वाला नहीं है। दुसरी ओर आर्थिक आधार पर आरक्षण देना एक तरह से इस बात की स्वीकारोक्ति है कि सरकार निर्धनता का उन्मूलन करने में असफल रही हैं और यह संविधान में आरक्षण के एकमात्र आधार सामाजिक पिछड़ापन के साथ छेड़छाड़ का भी प्रयास है। आरक्षण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है।

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