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कश्मीर मसले का कभी सैन्य समाधान नहीं हो सकता!

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नरेश दीक्षित

प्रधानमंत्री ने कहा है कि पुलवामा दर्शाता है कि बात करने का समय गुजर गया है। तब यह देश के हरेक नागरिक को यह पूछंना चाहिए कि वे क्या करने जा रहे हैं? चूँकि उन्होंने सशस्त्र बलों को जवाबी  कार्यवाही करने को कहा है तो वह किस हद तक जायेंगे? वर्तमान परिस्थितियों में सेना ज्यादा से ज्यादा एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक कर सकती है जैसा कि उरी हमले के बाद किया गया था।
इससे अधिक कुछ भी किया गया तो टकराव का दायरा बढ़ सकता है। अगर सेना द्वारा बड़े पैमाने पर नियंत्रण रेखा पार किया गया तो यह युद्ध का रूप ग्रहण कर सकता है और यहाँ तक कि परमाणु टकराव की स्थिति पैदा हो सकती हैं। क्या हम ऐसे हालात बननें दे सकते हैं? कश्मीर घाटी के पुलवामा में हुये आत्माघाती हमले की कड़ी आलोचना पुरे देश ने की हैं जहाँ 40 से अधिक सुरक्षा जवानों ने अपनी जान गंवाई हैं।
लेकिन मोदी सरकार की प्रतिक्रिया पर भी निंदा करना चाहिए जो पिछले पाँच सालों में कश्मीर घाटी में खराब होते माहौल तथा राज्य में राष्ट्रपति शासन थोपने के लिए जुम्मेदार हैं। मोदी व राजनाथ सिंह द्वारा दिये गये बयान से जाहिर है कि वे इस अत्यंत दुखद घटना पर पाकिस्तान सरकार के प्रति केवल गुस्सा प्रगट कर राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करेगें।
लेकिन क्या इस बात को नकारा जा सकता है कि खासकर मोदी सरकार सहित लगातार सभी केंद्र सरकारों ने कश्मीर को दुनिया के सबसे अधिक सैन्य गतिविधि वाले क्षेत्र में तबदील कर दिया है? क्या इस बात को नकारा जा सकता है कि मोदी सहित सभी केंद्र सरकारों ने पाकिस्तानी सरकार से लगातार बातचीत करने का प्रयास करके कश्मीर समस्या का हल निकालने के बजाय पिछले सात दशकों से कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग बताकर सेना को ही समाधान के रूप में चुना है?
इसके विपरीत सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने शुरूआती ढोंग करते हुए कश्मीर मसले का सैन्य समाधान खोजने में तेजी दिखाई, जो की वास्तव में आत्म-निर्णय के मूल भूत अधिकार को लेकर एक जन आन्दोलन है । सेना की मौजूदगी को कई गुना बढ़ा कर जन आन्दोलनों को कुचलने के लिए काले कानून व पेलेट गन जैसे हथियारों का इस्तेमाल तेज कर दिया गया है। पाकिस्तानी सरकार से बातचीत के सारे रास्ते बंद कर दिए गए, जिससे सीमा पार हमले दोनों तरफ से तेज हो गए हैं।
राजनीतिक लाभ के लिए प्रधानमंत्री ने तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक का प्रयोग किया जिसके फलस्वरूप कश्मीरी जनता खासकर युवा वग॔ स्वयं को दूर करने का प्रयास कर रहा है। कश्मीर में पिछले कई वर्षो से एक तरफ सेना व अध॔सेनिक बल दुसरी ओर कश्मीर के युवाओं की हत्या के मामलों में अभूतपूर्व तेजी आई है।
मोदी सरकार ने वहाँ ऐसी स्थित पैदा कर दी है कि आज पत्थर बाजी करने वाले आत्मघाती बंम बन रहे हैं। ऐसी गंभीर स्तिथ में मोदी सरकार अपनी जिम्मेदारी से हाथ नहीं धो सकती है। पुलवामा में आत्मघाती हमले में मारे गए जवानों के लिए मोदी सरकार की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के कारण बनी हैं। इस बात से सबक लेने के बजाय, एक बार फिर चुनाव में राजनैतिक लाभ लेने के लिए सीमा-पार सैन्य हमले तेज करने की धमकी हालात को और भी बदतर बनायेगी।
कश्मीर की समस्या का राजनैतिक हल एक ओर कश्मीरी जनता से और दुसरी ओर पाकिस्तान सरकार से खुली बात चीत के जरिये निकाला जाना चाहिए। मोदी सरकार कश्मीर समस्या के समाधान के लिए कितनी गंभीर है ये इसी से साबित होता है की लोकसभा चुनाव के साथ अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, ओडिशा और आंध्रप्रदेश में चुनाव तो कराये जा सकते हैं लेकिन कश्मीर में सुरक्षा का बहाना बनाकर चुनाव टाल दिए गए हैं। मोदी सरकार के इस निण॔नय की कश्मीर से लेकर सारे देश में आलोचना शुरू हो गई है जब स्थानीय निकायों के चुनाव सरकार शांति पूण॔ ढंग से करा लेती हैं तो विधानसभा चुनाव क्यो नही?

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