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नवीन सूचना भवन के निर्माण कार्य में बड़ा घोटाला?

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नरेश दीक्षित

पार्क रोड़ पर सूचना भवन का निर्माण वर्ष 1960 में हुआ था। भवन काफी पुराना एवं जर्जर हो जाने के कारण वर्ष 2013 में उसके सुदृढ़ीकरण एवं रेनोवेशन का प्रस्ताव तत्कालीन सूचना निदेशक द्वारा शासन को भेजा गया था। वर्ष 2014 में सूचना निदेशक द्वारा यह प्रस्ताव किया गया कि सूचना भवन के वर्तमान भवन को तोड़कर नए भवन बनायें जाने का प्रारम्भिक आगणन 54 करोड़ 76 लाख 11 हजार रूपये का अनुमानित व्यय बताया गया और इसके लिए 5 करोड़ रूपये का प्राविधान का अनुरोध शासन से किया गया।
सूचना भवन की मई 2018 की फोटो
चूँकि उत्तर प्रदेश निर्माण निगम का आकलन वर्ष 2012 की दरों पर प्रस्तावित किया गया था। इस लिए उनसे अद्यतन आंकलन वर्ष 2014 की दरों पर मांगा गया। निर्माण निगम ने संशोधित प्रस्ताव 57.72. 88 लाख का उपलब्ध कराया। व्यय वित्त समिति की बैठक दिनांक 2.3.2015 में प्रोजेक्ट को 46,4945 लाख रूपये पर अनुमोदित किया। प्रकरण में वित्त विभाग की सहमति से सूचना निदेशक को 5 करोड़ रूपये की स्वीकृति दिनांक 24.3.2015 को जारी किया गया।
जिसे सूचना निदेशक ने निर्माण निगम ( यूपीआरएनएन) को उक्त धनराशि उपलब्ध करा दी। सूचना निदेशक के पत्र दिनांक 29/2/2016 द्वारा शासन को यह अवगत कराया गया कि चूँकि सूचना भवन का निर्माण माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की रिक्त भूमि पर किए जाने का प्रकरण शासन में विचाराधीन है। इस कारण वर्तमान भवन का डिसमेंटल प्रारम्भ नहीं हुआ था और 5 करोड़ की धनराशि निर्माण निगम के पास रही।
दिनांक 23.6.2016 को कैबिनेट बैठक में यह निर्णय लिया गया कि डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल के विस्तार के लिए वर्तमान सूचना भवन चिकित्सालय को दिया जायेगा और माध्यमिक शिक्षा निदेशालय की रिक्त भूमि पर नवीन सूचना भवन का निर्माण किया जायेगा। व्यय वित्त समिति की बैठक दिनांक 23/12/2016 को रुपये 64,1471 लाख पर कतिपय शर्तो के आधीन अनुमोदन प्रदान किया गया। दिनांक 27/3/2017 को मा मुख्य मंत्री को प्रेषित की गई किन्तु उक्त पत्रावली विना अनुमोदन के वापस आ गई।
सरकार परिवर्तित हो चुकी थी वर्तमान सरकार के मा मुख्यमंत्री योगी जी ने उक्त पत्रावली पर दिनांक 30.3.2017 को आदेशित किया कि सूचना भवन के निर्माण का जो आगणन है वह हायर साइट प्रतीत हो रहा है। आगणन का परीक्षण किसी विशिष्ट एजेंसी से करा कर औचित्य सहित सुसंगत प्रस्ताव तत्काल प्रस्तुत किया जाए। निर्माण निगम के आगणन का परीक्षण किसी अन्य विशिष्ट एजेंसी से नहीं कराया गया बल्कि 18.4.2017 को विशेष सचिव, वित्त अधिकारी तथा निर्माण निगम के प्रोजेक्ट प्रबंधक को सम्मिलित कर समीक्षा कर ली गई।
यूपी निर्माण निगम को सूचना भवन के निर्माण के लिए प्राप्त संपूर्ण बजट के बाद भी अधूरा निर्माण फोटो अप्रैल 2019
मुख्यमंत्री के आदेशानुसार विशिष्ट एजेंसी से परीक्षण नहीं कराया गया, निर्माण निगम के आगणन/परीक्षण में निर्माण निगम के ही प्रोजेक्ट प्रबंधक को रखा गया जो नहीं रखा जाना चाहिए था। मा0 मुख्यमंत्री के आदेशों का अनुपालन में औचित्य पूर्ण प्रस्ताव क्यों नहीं उनके समक्ष प्रस्तुत किया गया? इन सभी अनियमितता के बाद भी दिनांक 2.9 2017 को शासन ने कतिपय शर्तो पर नवीन सूचना भवन के निर्माण हेतु 50,4701 लाख रुपये (पचास करोड़ सैतालिस लाख एक हजार मात्र) स्वीकृति प्रदान कर लागत के सापेक्ष में शासना देश दिनांक 29.12.2017 द्वारा 15.18.80 लाख रुपये प्रथम किस्त के रूप में सूचना निदेशक ने उत्तर प्रदेश निर्माण निगम को निर्गत कर दिया।
निर्माण निगम की यूनिट संख्या 10 के प्रोजेक्ट प्रबंधक सी एस ओझा द्वारा बिना किसी टेंडर के वर्क आर्डर पर कार्य शुरू कर दिया जो शासन के आदेशों का खुला उल्लंघन था चूँकि सूचना भवन के निर्माण कार्य हथियाने में अहम भूमिका थी इस लिए टेंडर के नियमों का उल्लंघन कर और प्रथम किस्त का प्राप्त धन का अभी 10 प्रतिशत कार्य पुरा भी नहीं हुआ था एक झूठी कार्य प्रगति की रिपोर्ट लगा कर दिनांक 29.3.2018 द्वतीय किस्त के रूप में 8.81.30 लाख रुपये पुनः प्रदान कर दिया गया। निर्माण निगम द्बारा प्राप्त धन का बंदर -बांट किया गया है।
उक्त भ्रष्टाचार का प्रकरण जब मीडिया में उछला तो दिनांक 24 मई 2018 को निर्माण निगम के एमडी ने उत्तर प्रदेश सरकार की ई-टेंडर वेबसाईट पर टेंडर अपलोड करा दिया गया तथा 26 मई 2018 को इंडियन एक्सप्रेस, नवभारत टाइम्स में एक छोटे से कालम में टेंडर को प्रकाशित करा दिया गया जिसे अधिकांश विल्डरों ने पढ़ा तक नहीं। मेसर्स ईसटन कांसट्रकशन कंपनी 559ख/317 श्री नगर आलमबाग लखनऊ का टेंडर न्यूनत पाए जाने पर कार्य आवंटित कर दिया गया। साथ ही निर्माण निगम की यूनिट संख्या 10 को कार्य से हटा कर यूनिट संख्या 16 के प्रोजेक्ट प्रबंधक पी.के. जैन को निर्माण कार्य सौंप दिया गया लेकिन कार्य में प्रगति और गुणवत्ता निम्न स्तर की बनीं रही।
यूनिट संख्या 10 को हटा कर जब कार्य यूनिट संख्या 16 को सौंपा गया तब तक यूनिट संख्या 10 के प्रबंधक ओझा ने 4.23.31 लाख रुपये का कार्य बिना किसी टेंडर के वर्क आर्डर पर करा दिया। चालू वित्तीय वर्ष 2018-19 के अनुदान संख्या 86 के अन्तर्गत सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के मुख्यालय निर्माण मद में रूपये 21.47.01 लाख में से मात्र 5 प्रतिशत धनराशि 2.52.35 लाख रोकते हुए अवशेष धनराशि 18.94.66 लाख रुपये निर्माण निगम को रिलीज कर दी गई।
निर्माण निगम को योजना लागत की पूर्ण धनराशि 50.47.01 लाख रुपये 29 मार्च 2019 तक प्राप्त हो गई थी। लेकिन निर्माण कार्य अब भी अधूरा है। सबसे बड़ा आश्चर्य तो यह है कि वर्ष 2014-15 में शासनादेश संख्या-80/उन्नीस-2-2015-81/2013 दिनांक 24 मार्च 2015 को अनुदान संख्या 86 के अन्तर्गत 5 करोड़ रूपये पुराने सूचना भवन को डिस्मेंटल कर बनाया जाना था लेकिन जब पुराने भवन को गिरा कर बनाने की योजना बदल गई तो 5 करोड़ रूपया वर्ष 2014-15 से यूपी निर्माण निगम के पास क्यों पड़ा रहा? इसे राजकीय कोष में जमा क्यों नहीं कराया गया इसकी जवाब देही आखिर किसकी थी?
सूचना विभाग एवं उत्तर प्रदेश निर्माण निगम की दुरभि संधि के कारण इस प्रोजेक्ट में बहुत बड़ा घोटाला हुआ है। मा0 मुख्यमंत्री जी जो प्रदेश में सुशासन एवं भ्रष्टाचार मुक्त की बात करते हैं क्या नवीन सूचना भवन के निर्माण कार्य में विलम्ब और इसमें व्यापक पैमाने पर हुए भ्रष्टाचारों की जांच उच्य स्तरीय एस आई टी टीम गठित कर करायेंगे?

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