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22 करोड़ वृक्षों के रोपड़ की युद्ध स्तर पर तैयारी!

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नरेश दीक्षित

प्रदेश में वन क्षेत्रफल व हरियाली बढ़ाने के लिए 15 अगस्त को 22 करोड़ वृक्ष रोपित किये जाने का लक्ष्य रखा गया है। लक्ष्य को पुरा करने के लिए प्रदेश सरकार के 23 मंत्रालय भी इस महाभियान का हिस्सा बनेगें। साथ ही प्रदेश की 58 हजार 924 ग्राम पंचायतें और 652 शहरी निकाय क्षेत्रों को भी अभियान में जोड़ दिया गया है।
योगी सरकार ने पिछले वर्ष भी 11 करोड़ वृक्ष रोपित किये थे और कहा गया था प्रदेश में 9.2 प्रतिशत हरियाली का स्तर बढ़ गया है? और अब 15 अगस्त को 22 करोड़ पौध रोपड़ के बाद प्रदेश का हरियाली स्तर 12 प्रतिशत बढ़ जायेगा ऐसा योगी सरकार का मानना है।
प्रदेश में हर वर्ष जुलाई-अगस्त में बड़े पैमाने पर प्रचार-प्रसार कर राज्यपाल, मुख्यमंत्री मंत्री, सांसद, विधायक, नेता, अधिकारी इत्यादि वृक्षारोपण करते हुए अपनी फोटो सूट कराते है। लेकिन इनमें से कोई जानने का प्रयास नहीं करता कि पिछले वर्ष भी फोटो सूट का कार्य क्रम हुआ था उसमें कितने पौध जीवित बचें है? प्रदेश के कितने भू-भाग पर वृक्षारोपण हो गया है और कितना भू-भाग अभी अवशेष हैं वृक्षारोपण रोपड़ के लिए । एक वृक्ष को बढ़ने, फूलने-फलने के लिए कितना समय लगता है और उनके लिए कितने वर्ग मीटर की भूमि जरूरत होती है।
आप यदि 2010 के पीछे का वृक्षारोपण छोड़ भी दें तो वर्ष 2011 में 21833 वर्ग किलो मीटर वन क्षेत्र था और यह मार्च 2019 तक 21833 वर्ग किलो मीटर वन क्षेत्र अब भी बना हुआ है? जबकि प्रतिवर्ष बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण होता है और करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। यहाँ तक कि पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा एक दिन में वृक्षारोपण का विश्व रिकॉर्ड बनाकर प्रदेश का नाम गिनीज़ बुक में दर्ज कराया था। लेकिन जब वर्ष 2011 से मार्च 2019 तक एक भी वर्ग किलो मीटर वन क्षेत्र का भूभाग नहीं बढ़ा है तो आखिर यह वृक्षारोपण हो कहा रहा है और इस पर प्रति वर्ष करोड़ रूपये खर्च कर किसकी जेब में जा रहा हैं? इस धन की बरबादी का आखिर जुम्मेदार कौन है?
विकास के नाम पर जो कंक्रीट के जंगल खड़े किये जा रहे हैं, सड़कों के जाल बिछाये जा रहे है, हाईवे, एक्सप्रेसवें बनाएं जा रहे हैं उनके लिए हजारों वृक्षों का कटान बेतहाशा हो रहा है। प्रति वर्ष जितने वृक्ष रोपित नहीं हो पाते हैं विकास के नाम उससे अधिक वृक्ष काट दिये जाते हैं? फलस्वरूप प्रदेश में हरियाली बढ़ने के स्थान पर रेगिस्तान में परिवर्तित हो रहा है। देशी आम, बेल पीपल, इमली, कैथा, महुआ, जामुन, नीम बरगद, शीशम इत्यादि का स्थान कभी भी अशोक, जंगल जलेबी, यूकीलेपटस, अर्जुन जैसे वृक्ष नहीं ले सकते।
पुराने किस्म के पौधों को पेड़ बनने में दशकों लग जाते हैं लेकिन आज उन पेड़ो की विकास के नाम पर अंधाधुंध कटाई हो रही है। लखनऊ, कानपुर, आगरा, मेरठ, सहारनपुर, बरेली, हापुड इत्यादि लकड़ी मंडियों में हर रोज दर्जनों ट्रक हरी लकड़ी बिकने आती है वन विभाग मौन है पुलिस खामोश है। क्या इस पर प्रतिबंध के लिए किसी सरकार ने आज तक कोई उपाय किये है?
योगी जी जब तक योजना की सफलता के लिए विभाग के मंत्री, प्रमुख सचिव, एवं विभाग के विभागाध्यक्ष की सीधी जिम्मेदारी तय नहीं करेंगे और दंड का प्राविधान नहीं करेंगे? तो आप भी पिछली सरकारों की तरह जब तक शासन सत्ता में है वन महोत्सव मनाते रहेंगे? लेकिन हरियाली सिर्फ वन विभाग के अफसरों की जेब में होगी? आप जब तक रोपित वृक्षों की सुरक्षा एवं जीवित बचे पौधों की गणना का उत्तरदायित्व वन विभाग को नहीं सौंपेंगे तब तक प्रदेश में हरियाली नजर नहीं आयेगी।

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