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लोकसभा चुनाव, विपक्ष भाजपा की नाकामी उजागर करने में असफल होने के कारण हारें!

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नरेश दीक्षित

17 वीं लोक सभा के लिए तीन महीने कटुतापूर्ण और गहमा-गहमी भरा प्रचार अभियान के बाद। जब 23 मई को चुनाव परिणाम घोषित हुए भाजपा गठबंधन को दो तिहाई बहुत मिला। चुनाव परिणाम से मुख्यधारा की विपक्षी पार्टियों को धक्का लगा है,
देश की प्रगतिशील जनवादी और संघर्षशील जन पक्षीय ताकतें भी हैरान है जो मोदी सरकार के खिलाफ अनेक संघर्षों का नेतृत्व कर रहे थे और मोदी हटाओं नारे के साथ अभियान चलाया था। वह सभी परिणामों से दंग रह गए हैं।
मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने 2014 का चुनाव ‘अच्छे दिन’ और ‘सबका साथ-सबका विकास’ नारे के साथ जीता था, मगर पिछले पांच सालों के दौरान मोदी सरकार द्वारा किये गये सभी बड़े फैसले जैसे नोटबंदी, जीएसटी से सभी क्षेत्रों की जनता बदहाल हुई थी।
इस फैसले से बेरोजगारी अपने चरम पर पहुंच गई थी, कृषि क्षेत्र में जबरदस्त निराशा और तनाव था कई राज्यों में किसान आत्महत्याएं कर रहे थे, अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमा पड़ रही थी, पर्यावरण का विनाश तेज हो रहा था।
मोदी सरकार के पिछले पांच साल में लिये गये फैसलों के गंभीर दुष्परिणामों की सूची लम्बी है। इसके साथ ही आक्रामक साम्प्रदायिकता के रास्ते पर चलकर नफरत की राजनीति फैलाकर दलितों और
धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर बहुसंख्यक की फूट डालो राज करो की राजनीति को चरम पर पहुंचा दिया गया था। इस परिस्थिति में मोदी सरकार के खिलाफ प्रतिरोध भी तेज होता गया था जो पहले विभिन्न जन संघर्षों के रूप में उभरा था
और फिर इसकी अभिव्यक्ति चुनाव में भाजपा की हार के रूप में होने लगी थी, जैसा कि छह महीने पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे भाजपा शासित राज्यों में देखने को मिला था।
इन सब चीजों से संकेत मिल रहा था कि 2019 के आम चुनावों में मोदी सरकार की पराजय सम्भव है? हालांकि विपक्षी पार्टियों में से किसी ने मोदी सरकार के खिलाफ कोई बड़ा अभियान नहीं चलाया था या संघर्षों को कोई बड़ा नेतृत्व नहीं किया था,
मगर उम्मीद की जाती थी कि मोदी को परास्त करने चुनाव के बाद गठबंधन की सरकार बनाने के लिए वे इन मुद्दों को उठायेंगे और 2014 में किये गये किसी भी बड़े वायदे को पुरा करने में मोदी सरकार की नाकामी को प्रमुखता से सामने लायेंगे।
लेकिन फरवरी महीने में पुलवामा में सी आर पी एफ पर हमला होने और उसके बाद पाकिस्तान के अन्दर आतंकी ठिकाने के खिलाफ बालाकोट में हवाई हमला किये जाने के बाद जब चुनावी प्रचार अभियान शुरू हुआ
तो मोदी ने अपनी सरकार के खिलाफ बढ़ते जन असंतोष की दिशा बदल दी और राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्रवाद के मुद्दों को उभार दिया, पाकिस्तान, मुस्लिम अल्पसंख्यक और कश्मीरी जनता के संघर्ष को निशाना बनाया गया।
इन मुद्दों को सामने रख कर एक लम्बा और काफी खर्चीला संकीर्ण राजनैतिक अभियान चलाया गया। नारा दिया यह नया भारत है, घर में घुसकर मारेंगे।
मोदी, अमित शाह और भाजपा के अन्य नेताओं ने चुनाव आयोग के आदर्श चुनाव संहिता का उल्लंघन करते हुए पुलवामा शहीदों के नाम पर, बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के नाम और मोदी सेना के नाम पर जनता से भाजपा को वोट देने को कहते रहे।
मालेगाँव आतंकी हमले की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से प्रत्याशी के रूप में उतारा गया, साम्प्रदायिक प्रचार अभियान को और तेज कर दिया गया।
इस प्रक्रिया में जाति के आधार पर पहचान की राजनीति करने वाली पार्टियों का जनाधार संघ परिवार के साम्प्रदायिक उन्माद में विलीन हो गया।
अपने विरोधियों को चकित करते हुए भाजपा और राजग में शामिल दलों ने व्यक्ति को केंद्र में रखकर प्रचार अभियान संचालित किया, मानों राष्ट्रपति का चुनाव हो। यह अपील की गई कि उनके उम्मीदवारों को एक-एक वोट मोदी के लिए वोट है।
चुनाव को मोदी के लिए जनमत संग्रह बना दिया गया। इसे अल्पसंख्यक-विरोधी राजनीति के साथ एक जंगखोर अभियान में तब्दील कर दिया गया।
विपक्षी पार्टियां विशेष रूप से कांग्रेस चुनाव आयोग के बहुमत के सहयोग से चलाये गये भाजपा के इस कुत्सित अभियान का पर्दाफाश करने और मुकाबला करने में असफल रही।
इसके अलावा जहाँ भाजपा ने राजग में शामिल पार्टियों को एकजुट रखने के लिए अपनी कुछ सीटें छोडने के लिए तैयार थी, वही विपक्षी दल मुख्यतः कांग्रेस अपने बीच एकता बनाने में असफल रही।
इस परिस्थिति में देश के कारपोरेट घरानों से मिले अपार धन, मीडिया की सेवाएं और सोशल मीडिया का सुनियोजित उपयोग कर मोदी ने अपनी जीत की स्थितियां निर्मित की।
इसमें चुनाव आयोग का भी सहयोग मिला, जिसनें मोदी की साव॔जनिक सभाओं और रोड़ शो के लिए सात चरणों में अब तक का सबसे लम्बा चुनाव करवाया और
यहाँ तक कि 19 मई को अंतिम चरण के चुनाव से एक दिन पहले मोदी को केदारनाथ और बद्रीनाथ में रोड़ शो करने की अनुमति प्रदान की। बिखरे हुए विपक्षी दल जिनके पास मोदी द्वारा किये जा रहे कारपोरेटीकरण का कोई वैकल्पिक दृष्टिकोण नहीं था
जो हिन्दुत्व की विचारधारा के साथ समझौता कर जाति आधारित राजनीति करते, मोदी-शाह जोड़ी के सामने आसानी से धराशयी हो गये।
भाजपा-नीति राजग की भारी जीत हुई। उसे 17 राज्यों में 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिला और बंगाल,ओडीसा जैसे राज्यों में अपने पैर जमाने में कामयाब रहे।
चुनाव आयोग की मिलीभगत से और मौजूदा चुनावी प्रणाली के छिद्रों का इस्तेमाल करते हुए जिसमें इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन का इस्तेमाल भी शामिल हैं
जिसके प्रति आलोचना दिन-प्रतिदिन तेज हो रही है, मोदी ने बिखरे हुए विपक्ष को आसानी से पटखनी दे दी। देश की सभी राजनैतिक पार्टियों को अब भाजपा से मुकाबला करने के लिए मौजूदा विकासक्रम का ठोस विश्लेषण करने की जरूरत है
जिसके चलते भाजपा की जीत हुई है और इसके खिलाफ आन्दोलन छेड़ने के लिए सभी संघर्षशील ताकतों को गोलबंद करने की जरूरत है।
जनवाद और विकास का एक वैकल्पिक घोषणा पत्र सामने रखकर और देश की जनता के जनवाद और समाजवाद के लिए तमाम उत्पीडित तबकों को एकजुट कर इस चुनौती का मुकाबला किया जा सकता है।

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