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सोज और आजाद का अलगाववादी अंदाज

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डॉ दिलीप अग्निहोत्री


कांग्रेस में मणिशंकरअय्यर, सलमान खुर्शीद, दिग्विजय सिंह, संजय निरुपम, संदीप दीक्षित की विरासत आगे बढ़ी। गुलाम नवी आजाद और सौफुद्दीन सोज से भी सीमा पार के आतंकी संगठन खुश हुए। सोज ने कश्मीर की आजादी का राग अलापा है, आजाद ने अपनी ही सेना पर हमला बोला है। वैसे दोनों नेताओं के एक ही समय में एक जैसे बयानों को सामान्य या संयोग मात्र नहीं कहा जा सकता।
गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगने के तत्काल बाद ये बयान आये है। वहाँ अब चुनाव की संभावना है। शायद इसी के मद्देनजर सुनियोजित ढंग से बयान दिए गए। दोनों घाटी से कांग्रेस के दिग्गज नेता है। इन्हें लग रहा है कि ऐसे बयानों से उन्हें घाटी के लोगों का समर्थन मिलेगा।
आजाद को तो जैसे लश्कर के सबसे बड़ा सम्मान नसीब हो गया। उसने लिखित प्रमाणपत्र जारी किया। इसमें कहा गया कि गुलाम नवी आजाद और लश्कर के विचारों में समानता है। आजाद भारत की सेना पर जो आरोप लगाया उसने लश्कर के दिल जीत लिया। आजाद ने कहा था घाटी में भारतीय सेना की कार्रवाई से आम नागरिक ज्यादा मारे जा रहे है। कश्मीर में एक आतंकी के लिए बीस नागरिक मारे जा रहे है।

इससे घाटी में हालात खराब हुए है। अभियान को ऑपरेशन आल आउट का नाम दिए जाने से साफ है कि सरकार बड़े जनसंहार की योजना बना रही है। आजाद का यह बयान आतंकियों को खुश करने के साथ उन्हें उकसाने वाला भी है। यह बयान शरारतपूर्ण भी है। क्योंकि आजाद ऑपरेशन ऑल आउट को जनसंहार से जोड़ा है। जबकि यह अभियान केवल आतंकवादियों के लिए है।
भारतीय सेना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने का भी प्रयास है। ऐसे ही बयानों के आधार पर संयुक्त राष्ट्र संघ का मानवाधिकार आयोग रिपोर्ट बनास् लेता है। भारत अकेला ऐसा देश है जहां विपक्ष के ऐसे नेता आतंकियों का मनोबल बढ़ाने वाले बयान देते है। आजाद ने इसके लिए झूठ का सहारा लिया।
उन्होंने अपनी बात के समर्थन में बिल्कुल गलत आंकड़े पेश किया। लेकिन उनका तीर निशाने पर बैठा। आतंकी, अलगाववादी सभी उनके मुरीद हो गए। आजाद की दूसरी शरारत देखिये। उन्होंने आतंकियों के हांथो मारे जाने वाले नागरिकों का जिक्र नहीं किया। मतलब उन्हें आतंकियों से नहीं, देश की रक्षा करने वाले सैनिकों से कठिनाई है।
आजाद को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये वही सैनिक है जिन्होंने बाढ़ में घाटी के लोगों की जान बचाई थी। दूसरी बात यह कि यह भारतीय सैनिक है जिनकी वजह से गुलाम नवी आजाद और सोज जैसे नेता घाटी में घूम सकते है। वस्तुतः यह घाटी में नेशनल कांफ्रेंस से बढ़त बनाने का प्रयास भी हो सकता है।
कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस में गठबन्धन है। लेकिन दोनों में घाटी से अधिक सीट जितने का मुकाबला भी है। ये जानते है कि अधिक सीट हासिल करने वाले का अधिक महत्व होगा। नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला पिछले काफी समय से अलगाववादियों और पाकिस्तान को खुश करने वाले बयान दे रहे है। ऐसा लगता है कि आजाद सुनियोजित ढंग से इस सियासत में कूदे है।

उनके बयान का कांग्रेस ने जिस प्रकार बचाव किया ,उससे इस आशंका को बल मिलता है। वैसे भी आजाद घाटी तक ही सिमट चुके है। उत्तर प्रदेश प्रभारी के रूप में वह कांग्रेस को कहा पहुंचा कर गए है, बताने की जरूरत नहीं है। इसी प्रकार सैफुद्दीन ने भी भारत वीरोधी बयान दिया।
उन्होंने कहा कि कश्मीर को आजाद कर देना चाहिए। सोज ने इसके लिए पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ से प्रेरणा ली। कहा कि मुशर्रफ भी कश्मीर की आजादी चाहते थे। जहां तक आतंकियों से खिताब की बात है, उसमें गुलाम नवी आजाद ने ही बाजी मारी। सोज ने भी भारत वीरोधी बयान दिया था।
लेकिन उन्होंने मुशर्रफ का नाम लेकर गड़बड़ कर दी। क्योकि मुशर्रफ को उनके मुल्क ने ही हाशिये पर फेंक दिया है। कोई उनका नाम नहीं लेता। जबकि गुलाम नबी आजाद के बयान को लश्कर-ए-तैयबा ने समर्थन दिया। आजाद के बयान पर लश्कर-ए-तैयबा ने ई-मेल के जरिए अपनी प्रतिक्रिया दी है।
लश्कर के जम्मू कश्मीर प्रवक्ता ने घाटी में लश्कर सरगना के हवाले से आजाद के बयान को सही करार दिया है। लश्कर के प्रवक्ता अब्दुल्ला गजनवी ने लश्कर सरगना महमूद शाह के हवाले कहा है किआजाद का नजरिया सही है। हम भी ऐसा ही सोचते हैं जैसा कि आजाद सोचते हैं।
भारत कश्मीर में राज्यपाल शासन के जरिए जगमोहन के दौर को वापस ला रहा है और ऐसा करके वह यहां के ढांचे को तबाह करना चाहता है और मासूमों की हत्या करना चाहता है। लश्कर ने राज्यपाल शासन को बड़े पैमाने पर नरसंहार को अंजाम देने की साजिश बताया है।
जाहिर है कि आजाद के बयान को लश्कर ने आगे बढ़ाया है। वह यहां राष्ट्रपति शासन पर ऐसे टिप्पणी कर रहा है, जैसे यह उसका आंतरिक मामला है। उसने  केंद्र सरकार की ओर से घाटी में रमजान माह के दौरान सुरक्षाबलों को दिए सीजफायर के आदेश को भी ड्रामा करार दिया।
कहा कि भारतीय सेना जुल्म कर रही है।सोज ने अपनी पुस्तक कश्मीरः ग्लिम्पसेज ऑफ हिस्ट्री एंड द स्टोरी ऑफ स्ट्रगल  में परवेज मुशर्रफ के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर वोटिंग की स्थितियां होती हैं तो कश्मीर के लोग भारत या पाक के साथ जाने की बजाय अकेले और आजाद रहना पसंद करेंगे।
गुलाम नवी के बयान का कांग्रेस ने जिस बेशर्मी से बचाव किया ,वह भी अनुचित था।  बयान पर पार्टी प्रवक्ता सुरजेवाला ने कहा कि आजाद ने सिर्फ यह कहा है कि सैन्य अभियान के दौरान आम नागरिकों को कम से कम नुकसान होना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि इस देश के सुरक्षा बल आतंकवादियों और माओवादियों को मुंहतोड़ जवाब देते आये हैं और आगे भी देते रहेंग।
प्रवक्ता ने यह भी कहा कि  कहा कि यशवंत सिन्हा कश्मीर को लेकर बयान दे रहे हैं, कोई बात नहीं हो रही है। आडवाणी ने जिन्ना की तारीफ की, भाजपा ने पीडीपी के साथ सरकार चलाई। इन लोगों को जम्मू-कश्मीर पर बात करने से पहले खुद से सवाल करने चाहिए।
जाहिर है कि सोज और आजाद दोनों का बयान भारत वीरोधी दायरे में आता है। एकता और अखंडता के विरोध में दिया गया बयान देश द्रोह की श्रेणी में आता है। कश्मीर को आजाद करने की बात पर कानून को अपना काम करना होगा। कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं है। जिनका इस तथ्य पर यकीन नहीं या जिनकी हमदर्दी पाकिस्तान से है, वह अपना भविष्य तय कर सकते है।
भारत का भविष्य तय करना उनका काम नहीं है। लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना के पाकिस्तान में पहले भाषण की याद दिलाई थी, जिसमें उन्होंने सेक्युलर मुल्क बनाने का वादा किया था। भाजपा ने पीडीपी के साथ न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने के बाद सरकार का गठन किया था। यशवंत सिन्हा तो भाजपा के बागी है। उनके किसी बयान से भाजपा का मतलब ही नहीं है। ऐसे बेसिर पैर के तर्क देकर कांग्रेस के प्रवक्ता पार्टी की ज्यादा फजीहत कराते है।
इसी प्रकार गुलाम नवी आजाद ने भारतीय सेना को ही कठघरे में लाने का घृणित प्रयास किया है। उनके बयान ने जान की बाजी लगा कर सीमा की रक्षा करने वाले भारतीय जवानों का मनोबल गिराने का प्रयास किया है। इसी के साथ उन्होंने सीमापार के आतंकी संघठनों का मनोबल बढ़ाया है। गलत बयानी से उन्होंने भारतीय सेना को बदनाम करने का प्रयास किया है।
कांग्रेस की इस पर सफाई चोरी और सीनाजोरी जैसी है। कहा कि आजाद कहना चाह रहे थे कि कार्रवाई में आम नागरिक न मारे जाए। इस सफाई का क्या मतलब है। क्या सेना की कार्रवाई में आतंकी कम आम नागरिक ज्यादा मारे जा रहे है, क्या अब यह नौबत आ गई कि गुलाम नवी आजाद और रणदीप सुरजेवाला सेना को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई का सलीका बताएंगे।
वास्तव में यह बयानबाजी और सोज की किताब का इस समय जारी होना चुनावी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। लेकिन वोट के लिए पाकिस्तान और आतंकी संघठनों को खुश करने वाले बयान राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल है। ऐसे मसलों पर सेक्युलर ताकतों की खामोशी हतप्रभ करती है।

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