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चाइल्ड पोर्नोग्राफी बाल अपराध की जड़

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रमेश ठाकुर


चाइल्ड पोर्नोग्राफी की लत नाबालिगों के मस्तिष्क को दीमक की तरह खा रही है। यही वजह है कि बलात्कार की घटनाओं में नाबालिगों की संलिप्तता लगातार बढ़ती जा रही है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजे आंकड़ों के मुताबिक देश में बलात्कार की घटने वाली हर पांचवीं घटना में नाबालिगों की भूमिका सामने आ रही है।

स्कूलों में पढ़ने वाले मात्र दस-पंद्रह साल के नसमझ बच्चे इस जघन्य अपराध को अंजाम दे रहे हैं। मध्यप्रदेश में घटी हाल की दो घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर दिया। छोटे-छोटे बच्चे इतने खूंखार हो सकते हैं जिसकी किसे ने कल्पना तक नहीं की होगी? मध्यप्रदेश में विगत दिनों दस साल की लड़की के साथ पंद्रह साल के लड़के ने दिन दहाड़े जबरन बलात्कार किया।
लड़के ने बलात्कार करने के बाद जो अदम्य क्रूरता दिखाई उसे देख-सुनकर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। लड़के ने पहले बच्ची के साथ घिनौना कृत्य किया उसके बाद तीन बार पेट में चाकू घोपा। फिर बच्ची ने जब चिल्लाना शुरू किया तो उसके सिर, पेट और जांघों में चाकूओं से ताबड़तोड़ प्रहार कर बच्ची को अधमरी करके भग गया।
घटना को अंजाम देकर फरार हुए लड़के को कुछ ही घंटों में पुलिस ने उसे दबोच लिया। पुलिस की पूछताछ में जब लड़ने ने बलात्कार करने कारण बताया तो पुलिसकर्मी भी उसकी बात सुनकर सन्न रह गए। लड़के ने बताया कि वह अपने फोन में पोर्न फिल्में देखता था। उन फिल्मों का असर उसके दिमाग में इस कदर समा गया जिससे वह अपराध करने पर मजबूर हुआ।
दरअसल उस लड़के की अपराधबोध स्वीकृति हमें यह बताने के लिए काफी है कि अतिआधुनिक मोबाइल और तेज नेटवर्क मौजूदा पीढ़ी को किस रास्ते पर ले जा रहा है। सोसल मीडिया, इंटरनेट, अतिआधुनिक मोबाइल और तेज नेटवर्क ने इंसान को जहां एक दूसरे से जोड़ने का काम किया है, वहीं इसके कई खतरे और दुष्प्रणाम भी उभरकर सामने आए हैं जिसमें सबसे अव्वल किशोरों में बढ़ती पोर्न देखने की लत।
सिगरेट पीना, गाली देना, असंस्कारीपन का हावी होना, सामाजिक सोच से बेखबर, गलत आचरण को अपनाना, बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों की दलदल में समाना आदि की देन आज इंटरनेट की ही है। इंटरनेट और मोबाईल फोनों की लत युवाओं में ऐसे लग चुकी है जो छूटने का नाम ही नहीं ले रही।
स्कूल, कालेज, बाजार व सार्वजनिक स्थान हर जगह लोग फोनों से चिपके देखे जाते हैं। स्कूली बच्चों के पास क्लासरूम में फोनों की बरामदगी अब आम बात हो गई है। उनके फोनों की जब जांच की जाती है तो सबके होस उड़ जाते हैं। उनके फोनस् में सिर्फ अडल्ट फिल्में स्टोर मिलती हैं।
इस आफत से छुटकारा दिलाने के लिए न अभिभावकों के अलावा सरकार के पास भी कोई मनोवैज्ञानिक उपाय नहीं है। बाल मस्तष्कि और ह्यूमन साइकोलॉजी के शोधकर्ताओं और विशेषज्ञों बताते हैं कि हिंदुस्तानी किशोरों में पोर्न देखने की लत कुछ ही सालों से ज्यादा बढ़ी है।
जबसे एंड्रॉयड फोनों में इस्तेमाल होने वाले इंटरनेट डाटा की कीमतें कम हुई हैं तभी से इनका दुरूपयोग होने लगा है। इससे मोबाईल कंपनियों और सरकारों का परस्पर मुनाफा होने लगा है। बलात्कार जैसे कृत्यों के पीछे तेजी से बढ़ती इंटरनेट की दुनिया है। युवाओं में इंटरनेट की उपलब्धता जितनी तेजी से बढ़ रही है अपराध भी उसी गति से बढ़ने शुरू हो गए हैं।
नाबालिगों में बढ़ती पोर्न देखने की लत पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने 850 पोर्न साइट पर बैन लगा दिया है। साथ ही कुछ सख्त कानून बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। हाल ही में सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय की ओर इस मसले पर बैठक भी आयोजित हुई। वाटसएप ग्रुपों पर पोर्न पिक्चरों को प्रसारित करने पर जुर्माने का भी प्रावधान बनाया।
इसके अलावा साइबर कैफों में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रतिबंधित करने का भी फैसला लिया गया। देखा जाए तो यह मौजूदा समस्या को रोकने के विकल्प नहीं हो सकते। जबतक एंड्रॉयड फोन और इंटरनेट पैक व डाटा पर रोक नहीं लगाते तबतक समस्या पर अंकुश नहीं लग सकता। इंटरनेट प्रोवाइडर कंपनियां सख्ती के बाद भी चुपके से बंद साइटों को खोल देती हैं। कंपनियों को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब होता है। इंटरनेट से कोई बिगड़ रहा है तो उससे उनको फर्क नही पड़ता।
करीब दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने चाइल्ड पोर्नोग्रफी न रोकने पर केंद्र सरकार की जमकर लताड़ लगाते हुए उन साइटस को तुरंत ब्लॉक करने को कहा था जो भारत में बिना इजाजत के पोर्नाग्राफी की अवैध साइट चलाते हैं। सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी के बाद सरकार के कहने पर टेलिकॉम कंपनियों ने करीब 850 एडल्ट साइटों को ब्लॉक कर दिया। सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश आईटी एक्ट के आर्टिकल 19(2) के तहत जारी हुआ था।
सरकार के पास शालीनता और नैतिकता बनाए रखने के लिए बैन लगाने का अधिकार होता है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक दूसरे आदेश में पोर्न साइटों पर बैन लगाने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि कोई किसी को बंद कमरे में पोर्न देखने से कैसे रोक सकता है? लेकिन उनकी यह बात बच्चों पर लागू नहीं होती।
बाल अपराध की बढ़ती घटनाओं पर न्यूरोसाइंटिस्टों का मत है कि नाबालिगों में बहुत ज्यादा पोर्न देखने से उनके दिमाग के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है जिससे उनके मनोविकार होने का भी खतरा लगातार बना हुआ है। मनोविकारक होने पर बच्चे बड़ी घटनाओं को अंजाम देने पर उतारू हो जाते हैं। जैसा की आजकल बच्चे करने लगे हैं। इस समय पूरी दुनिया इंटरनेट की जकड़ में है।
इंटरनेट का कम उम्र के बच्चे बहुत तेजी से दुरुपयोग कर रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावक असर स्कूली बच्चों पर पड़ रहा है। लड़कों के अलावा लड़कियां भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगी हैं। जब से 4जी की स्पीड आई है युवाओं पर बुरा असर पड़ना शुरू हुआ है। रिलाइंस के फोन में तीन महीने का फ्री इंटरनेट स्कीम ने हिंदुस्तान को अपने कब्जे में ले लिया है।
फ्री के इंटरनेट में नाबालिगों में पोर्न फ़िल्में देखने में दिलचस्पी इस कदर बढ़ी की अब छूटने का नाम ही नहीं ले रही। बच्चे घंटों फोनों में घुसे रहते हैं। समय रहते अगर इस समस्या पर काबू नहीं पाया गया तो आने वाला समय बहुत ही भयाभय होगा। बच्चे जिस दिशा में भागे जा रहे उससे अभिभावक खासे चिंतित हैं। सरकार को इस समस्या का तुरंत प्रभाव से उपाय खोजकर निदान करने की दरकार है।

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