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आम आदमी के सामने प्रदूषण का गहराता संकट?

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नरेश दीक्षित (संपादक समर विचार)


देश के मुट्ठी भर दौलतमंदो के सामने आम आदमी की हैसियत महज कीड़े – मकोडों जैसी है। उनकी संपत्ति अर्जित करने की हवस के आगे जान की कोई कीमत नही है। आप का ध्यान पिछले माह तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदांता स्टरलाइट कापर कारखाने में बढते जानलेवा घातक प्रदूषण का विरोध कर रहे लोगो पर पुलिस फायरिंग से तेरह लोगों की नृशंस हत्या से तो ऐसा ही प्रतीत होता है।

उनका अपराध यह था कि वे बढ़ते घातक प्रदूषण के मद्देनजर लम्बे समय से स्टरलाइट प्लांट के विस्तार का विरोध कर रहे थे। उनका आरोप है कि प्लांट की वजह से इलाके का पानी दूषित हो गया है तथा वातावरण में धूलकण एवं हानिकारक गैसे फैल गई है। देश के विभिन्न भागों में प्राकृतिक संसाधनो के निम॔मता पूव॔क दोहन एवं लूट ने वंचितो, गरीबो, कमजोर वर्गो के समक्ष अस्तित्व का संकट खड़ा कर दिया है। स्थिति यह है कि कुल सम्पति का 73 प्रतिशत हिस्सा एक प्रतिशत लोगों की मुट्ठी में कैद हो चुका है।
प्राकृतिक संसाधनो की इस लूट के लिए लोगों को गांवो से बलपूर्वक खदेड़ा जा रहा है। प्रदूषित जल, वायु का सेवन कर लोग गंभीर बीमारियों एवं मौत को आमंत्रित कर रहे है। सत्ता व्यवस्था अपने फायदे के लिए उनके साथ है। आमतौर पर इस मामले में जागरूक एवं संगठित नही होने के कारण लोग इस का समुचित विरोध नही कर पाते। विरोध अनसुना कर दिया जाता है बल पूव॔क उसे कुचल दिया जाता है।

देश की हालत यह होगई है कि अपनी बदहाली के कारण किसान आत्म हत्या को मजबूर हो रहे है। मजदूरो के सामने रोज़गार एवं रोजी रोटी का संकट गहराता जा रहा है। छात्र, युवा, महिलाए, दलित, आदिवासी , अल्पसंख्यक अपने अपने कारणों से बेचैन व परेशान है। ऐसे में पर्यावरण का गहराता संकट आम आदमी के सामने उनका आस्तित्व दांव पर लगाते हुए खतरनाक संकट पैदा कर रहा है। यह स्थित अंततः समाज एवं देश के लिए घातक साबित होगी ।ऐसे में संगठित लोकतांत्रिक जन प्रतिरोध ही लोगो को इस संकट से उबार सकता है।

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