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जनता की बर्बादी के लिए मोदी जिम्मेदार

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नरेश दीक्षित (संपादक समर विचार)

यह भारत की जनता को आर्थिक रूप से निचोड़ने वाला सबसे बड़ा कदम था। इस कदम से आम जनता के व्यापक हिस्से को जबरन अपने पैसे से वंचित कर दिया और उसकी क्रय शक्ति अचानक पुरी तरह से खत्म हो गई। वहीं भारत के सबसे भ्रष्ट वित्तीय थैली शाहों के राजनैतिक प्रतिनिधि मोदी के हाथ में नोटबंदी ऐसा कारपोरेटी हथियार साबित हुआ जिसने देश की जनता का रक्त चूस लेने में बैंको और कारपोरेट घरानों की मदद की।
भारत में 90% से ज्यादा रोजगार प्रदान करने वाले असंगठित क्षेत्र में काम थम गया और भारत की जनता को अपनी पात्रता साबित करने के लिए अंतहीन लाइन में खड़ा होना पड़ा। नोट बंदी से पैदा हुआ क्रेडिट संकट अब भी बना हुआ है जो कई तरह से अभिव्यक्त हो रहा है। इसमें बैंको का संकट भी शामिल हैं।
भ्रष्टाचार और काले धन को खत्म करने के नाम पर लागू की गई नोटबंदी से जहाँ सारा काला धन और कारपोरेट ठगों की बेहिसाब सम्पत्ति सफेद हो गई वही मोदी राज में भारत दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों में गिना जाने लगा। सरकार के पास नोटबंदी के अपने दावों को सही साबित करने के लिए कोई आंकड़ा नहीं है। आर बी आई के ताजा रिपोर्ट के अनुसार नगदी का प्रवाह नोटबंदी के पहले के स्तर से भी बढ़ चुका है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि करेंसी का वास्तविक फैलाव वष॔ 2016 से भी ज्यादा हो चुका है। एक एजेंसीकी रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के दौरान बैंको के पास आए 15,31,073 करोड़ रूपये को नष्ट करने में हुए खच॔ को लेकर आरबीआई ने किसी भी प्रकार की जानकारी देने से इनकार कर दिया।
बैंको में वापस आए कुल 99.3 %करेंसी को नष्ट करने में हुए खर्च को लेकर एक आर टी आई काय॔ कर्ता ने सवाल पूछे थे। आर बी आई के मुताबिक करेंसी सत्यापन की मशीनों के जरिए प्रतिबंधित नोटों को बेकार किए जाने की प्रक्रिया मार्च 2018 में संपन्न हुई । इसके साथ ही 10,720 करोड़ रूपये मूल्य के अवैध नोट बैंको में नहीं लौटे।
आखिर नोटबंदी की यह पुरी प्रक्रिया का देश के खजाने पर कितना असर हुआ?मोटे तौर पर यह राशि नए नोटों की छपाई पर आने वाले खर्चे से कम नहीं है। आर बी आई की सालाना रिपोर्ट के अनुसार साल 2016-17 में नए नोटों को छापने में 7,965 करोड़ रूपये खर्च हुए। यह राशि 2015-16 में नोटों की छपाई पर खच॔ हुए 3,420 करोड़ रूपये के दोगुना से भी ज्यादा और साल 2014-15 में खच॔ हुए 2770 करोड़ रुपये से करीब 2.6 गुणा ज्यादा है।
इसका अर्थ यह हुआ कि पुरानी करेंसी को वापस लेने और अवैध करेंसी को खत्म करने के अतिरिक्त 8000 करोड़ रुपये खर्च हुए। करेंसी की कमी को पुरा करने के लिए हवाई जहाज का इस्तेमाल और बैंको में गिनती के बाद आर बी आई में दोबारा गिनती की इन प्रक्रियाओं के साथ ही बड़ी संख्या में एटीएम की गड़बड़ियों को ठीक करने में यह खच॔ और बढ़ गया।
एक मोटे अनुमान के मुताबिक यह राशि 4000 करोड़ रुपये कम नहीं होगी । जाहिर तौर पर नए नोट छापने और पुराने नोटों को खत्म करने में ही सरकार ने 20000 करोड़ रुपये से ज्यादा खच॔ कर दिए । देश की जनता को मोदी से इसका जवाब आगामी लोकसभा चुनाव में मांगना चाहिए?

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