Tevar Times
Online Hindi News Portal

भारत की कामगार महिलाओं की स्थिति दयनीय!

0
नरेश दीक्षित (संपादक- समर विचार)

आज के भूमंडलीकरण, निजी करण, उदारीकरण के दौर में महिला कामगारों की दशा पहले से बदतर हो गई है । कुल श्रमिक में से 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र से हैं और वह भी बिना किसी श्रम कानूनों के। यह बात इस लिए भी गंभीर है कयोंकि केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा आयोजित 46वें राष्ट्रीय श्रम सम्मेलन का उद्घाटन स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।
सम्मेलन में 3 मांग सर्व सम्मति से पारित की गई थी एक न्यूनतम मजदूरी की दर तय करनें के लिए पारदर्शी प्रयुक्त होगी, दो संविदा नियुक्त वाले श्रमिकों को समान काम का समान वेतन देना पड़ेगा और तीन आंगनवाड़ी  कार्यकर्ता    व विभिन्न सरकारी योजनाओं में कार्यरत अन्य कम॔चारियों को न्यूनतम वेतन देना पड़ेगा और उसके लिए सामाजिक सुरक्षा की वयवस्था करनी होगी।
लगातार चार राष्ट्रीय सम्मेलन में यही मांग उठी है लेकिन प्रधानमंत्री जिस श्रम सम्मेलन में उपस्थित थे उन्होंने जिसका उदघाटन किया था, उसी सम्मेलन में पारित सिफारिशों को केंद्र सरकार नही मान रही हैं। इससे मौजूदा सरकार का मजदूर विरोधी, महिला विरोधी रवैया उजागर हो गया है।
भारत में लगभग कुल श्रमिकों का 31 प्रतिशत महिलाएं है जिनमें से 94 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में काम करती है । इन क्षेत्रों में न तो कोई सामाजिक सुरक्षा है और न ही काम के निश्चित घंटे। प्रतिस्पर्धा के कारण अपने काम को बचाए रखने के लिए महिलाएं देर तक अपनी क्षमता से अधिक से अधिक काम करती है जो अक्सर इनकी बीमारी का कारण भी बनती हैं।
मगर आम महिला श्रमिक आज भी सामाजिक सुरक्षा, समान पारिश्रमिक, कारगार वयवस्था, अवकाश, मातृत्व लाभ, विधवा गुजारा भत्ता और कानूनी सहायता आदि से वंचित है। अक्सर यह भी देखने में आता है कि गर्भावस्था का पता चलते ही मजदूरी से निकाल बाहर कर दिया जाता है कयोंकि इस अवस्था में वे अधिक देर तक और ज्यादा मेहनत वाले काम नहीं कर सकती हैं।
रोजी-रोटी की तलाश में गांवों से शहरों में पलायन करते समय कई बार ये महिलाएं दलालों और असामाजिक तत्वों के चंगुल में भी फंस जाती हैं और मानव तस्करी से लेकर यौन शोषण तक का शिकार होती हैं। भारत में दूसरों के घरों में काम करने वाली महिला श्रमिकों की संख्या लगभग एक करोड़ है।
यह एक बड़ी श्रम शक्ति है जो श्रमिक होने के बावजूद औपचारिक रूप से श्रम कानूनों से वंचित होती है। किसी भी देश में आधी आबादी महिलाओं की होती है और बिना उनके विकास के किसी भी देश का विकास संभव ही नही हो सकता। जरूरत इस बात की है कि महिला कामगारों को न्यूनतम वेतन तथा समान काम के लिए समान वेतन दिया जाये।
श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव करने से सरकार बाज आये, बेलगाम महंगाई पर रोक लगाई जाये जिससे महिलाएं सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। इनका संगठित न होना इनके विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इसी कारण यह महिलाएं अपने अधिकारों के हनन का विरोध नही कर पाती और शोषित होने के लिए अभिशप्त होती है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More