श्याम कुमार
कहावत है कि घूरे के दिन भी फिरते हैं। सवाल है कि क्या लखनऊ नगर निगम के दिन बहुरने जा रहे हैं? विगत एक दशक से अधिक समय से न केवल लखनऊ नगर निगम, बल्कि उत्तर प्रदेश के समस्त स्थानीय निकाय बहुत बुरी दशा में हो गए थे। वे भ्रश्टाचार एवं निकम्मेपन के पर्याय बन गए थे।
बसपा एवं सपा के कार्यकाल में नगर विकास मंत्री के रूप में नकुल दुबे एवं आजम खां ने नगर विकास विभाग को इस बुरी तरह चौपट किया कि उसका पुनः पटरी पर आ पाना बहुत अधिक कठिन है। पूरे प्रदेश में छोटे-बड़े, सभी शहरों में स्थानीय प्रशासन नाम की चीज नहीं रह गई थी।
पारी-पारी से दोनां मंत्रियों के चहेतों का स्थानीय निकायों के प्रशासन पर कब्जा हुआ था, जिन्होंने अपने मंत्रियों को खुश करने के चक्कर में स्थानीय निकायों को बरबाद कर दिया था। प्रदेश के समस्त नगर गंदगी से पटे रहते थे, जिनसे बीमारियां फैलती थीं।
जर्जर सफाई व्यवस्था के साथ टूटीफूटी सड़कें भी शहरों की खास पहचान बन गई थीं। संक्षेप में कहा जाय तो शहरों में स्थानीय प्रशासन का होना और न होना बराबर हो गया था। स्थानीय निकाय सिर्फ एक मामले में बड़े अव्वल थे और वह था भ्रश्टाचार।
जनता के टैक्स से वसूला गया अधिकांश धन भ्रश्टाचारियों एवं घोटालेबाजों की जेब में चला जाता था। चूंकि इन समस्त दुर्दशाओं को मंत्री का संरक्षण प्राप्त रहता था, इसलिए कहीं कोई कार्रवाई नहीं होती थी। जनता फरियाद करती रहती थी, लेकिन उसकी फरियाद नक्कारखाने में तूती की आवाज सिद्ध होती थी।
लखनऊ नगर निगम तो भ्रष्टाचार एवं घोटालों का गढ़ बना हुआ था। अफसर हमेशा रोना रोते रहते थे कि नगर निगम के पास पैसों की बेहद कमी है। जनहित के प्रत्येक कार्य पर अफसरों का यही जवाब हुआ करता था। नगर आयुक्त भी छांटकर ऐसे व्यक्ति बनाए जाते थे, जो जनता को तो शूल की तरह प्रतीत होते थे, लेकिन वे नगरविकास मंत्री की आंख के तारे होते थे।
शैलेश कुमार सिंह एवं उदय राज सिंह इस मामले में सिरमौर सिद्ध हुए। एक बार लखनऊ नगर निगम को नागेन्द्र प्रसाद सिंह के रूप में बहुत योग्य एवं ईमानदार नगर आयुक्त मिला था, लेकिन आजम खां की आदत व सनक ने उन्हें टिकने नहीं दिया। यदि वह टिक जाते तो लखनऊ का बहुत अधिक कल्याण हो जाता।
लेकिन बसपा एवं सपा के शासनकाल में नकुल दुबे व आजम खां को सिर्फ अपने कल्याण से मतलब रहता था तथा उनके लिए ‘जनता जाय भाड़ में’ होती थी। लखनऊ नगर निगम के नए नगर आयुक्त के रूप में डॉ0 इन्द्रमणि त्रिपाठी का आगमन हुआ है। उनकी अच्छी ख्याति सुनी है तथा सही छविवाले माने जाते हैं।
वह जहां भी तैनात रहे हैं, उत्साही एवं योग्य अधिकारी के रूप मे चर्चित रहे हैं। हालांकि लखनऊ में नगर आयुक्त का कार्यभार ग्रहण करने के बाद उन्हें ‘सिर मुड़ाते ही ओले पड़े’ वाली स्थिति का सामना करना पड़ा। उन्होंने सबसे पहले लखनऊ नगर निगम की छवि सुधारने हेतु कर्मचारियों के तबादले का कदम उठाया।
तबादले भी सिर्फ एक पटल से दूसरे पटल पर अथवा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में होने थे। लेकिन इस पर नगर निगम में हंगामा मच गया। नए नगर आयुक्त को अभी यह तो छोटी सलामी मिली है। नगर निगम में भ्रष्टाचार एवं घोटालों के जो बड़े-बड़े मगरमच्छ हैं, जब उनके रास्ते रोके जाएंगे तो वे बड़े गुल खिलाएंगे। अतः यह कहा जा सकता है कि डॉ0 इन्द्रमणि त्रिपाठी की असली अग्नि-परीक्षाएं अभी बाकी हैं।
मुझे याद है, एक बार एक बड़े ईमानदार अधिकारी लखनऊ नगर निगम के नगर आयुक्त बनाए गए थे, लेकिन वह इतने अधिक सज्जन थे कि निगम के ‘मगरमच्छों’ को झेल पाना उनके बूते की बात नहीं थी। इसी से उन्होंने उस पद पर जाने से मना कर दिया था।
डॉ0 इन्द्रमणि त्रिपाठी को यदि महमूद बट, शचीन्द्र कुमार सरकार, रामदास सोनकर, राजीवरत्न शाह आदि पुराने दबंग वरिश्ठ अधिकारियों की तरह अपने कार्यकाल को लखनऊ की जनता की निगाहों में यादगार बना देना है तथा जनता के हृदय में अमरत्व प्राप्त कर लेना है तो उन्हें जनता को सुखी करने के लिए निगम के ‘राक्षसों’ का उन्मूलन करना ही पड़ेगा।
उनपर चाहे जितने दबाव चाहे जिस ओर से पड़ें, उन्हें बहादुरी से उनका मुकाबला करना होगा। हो सकता है, वे तत्व उन्हें यहां पर अधिक न टिकने दें, लेकिन यह सत्य है कि जनता को पसन्द आनेवाली उनकी जो धाकड़ एवं प्रिय छवि बन जाएगी, वह उनके भविष्य के कार्यकाल में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अधिकारियों की सूची में स्थापित कर देगी।
नगर आयुक्त डॉ0 इन्द्रमणि त्रिपाठी को ऐसे रचनात्मक एवं जनहितकारी कार्य करने चाहिए, जो उन्हें चिरस्मरणीय बना दें।
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उन्हें पूरे लखनऊ शहर को हरियाली से भर देना चाहिए। बरसात का मौसम आ रहा है, जिसका सदुपयोग करते हुए उन्हें लखनऊ के चप्पे-चप्पे में वृक्षारोपण कराना चाहिए तथा बहुत कड़ाई से यह निगरानी करानी चाहिए कि लगाए गए सभी पेड़ जीवित रहें। प्रतिवर्श वृक्षारोपण में बहुत भ्रष्टाचार होता है तथा अधिकांशतः कागजों पर ही पेड़ लगाए जाते हैं। नगर निगम के उद्यान विभाग को चुस्त किया जाना चाहिए, ताकि नगर के सभी पार्क अधिकाधिक खूबसूरत प्रतीत हों।
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वर्तमान समय में सड़कों का विभाजन बीच में पक्का डिवाइडर बनाकर या लोहे की ग्रिल बनाकर किया जाता है। इसमें भ्रश्टाचार की बहुत गुंजाइश होती है। अतः इसके बजाय सड़कों का विभाजन पेड़ों की कतार द्वारा किया जाना चाहिए। हो सके तो हर सड़क के बीच में पेड़ों की कतार द्वारा डिवाइडर बनाया जाय तथा सड़क के अगल-बगल भी पेड़ों की कतारें लगाई जाएं। इससे सड़कों की खूबसूरती तो बढ़ेगी ही, शहर का पर्यावरण भी शुद्ध रखने में बहुत मदद मिलेगी।
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बरसात आनेवाली है, अतः उससे पहले ही शहर के समस्त नाले-नालियों की भलीभांति सफाई हो जानी चाहिए। अभी इस कार्य में भी भ्रष्टाचार होता है, जिसके परिणामस्वरूप वर्शा होने पर सड़कें पानी से भर जाया करती हैं। कुछ वर्श पूर्व शहर के सीवर-सिस्टम को सही करने का कदम उठाया गया था, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण वह उद्देश्य पूरा नहीं हो सका। अतः नए नगर आयुक्त को शहर की सीवर-प्रणाली इतनी दुरुस्त कर देनी चाहिए कि कितनी भी बरसात हो, सड़कों पर पानी नहीं भरे।
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वर्तमान समय में नालियों की जब सफाई की जाती है तो उससे निकला सिल्ट वहीं नाली के किनारे रख दिया जाता है। बाद में वह सिल्ट पुनः नाली में चला जाता है। अतः यह व्यवस्था की जानी चाहिए कि जिस समय नालियों की सफाई हो, एक दूसरा दस्ता उसी समय उस सिल्ट को उठाता भी चले।
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शहर में आवारा जानवरों का उत्पात इतना अधिक बढ़ गया है कि नित्य काफी लोग उसकी चपेट में घायल हो जाते हैं। अतः शहर को आवारा जानवरों से मुक्त किया जाना चाहिए।
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शहर में जितने भी क्षेत्राधिकारी (जोनल अफसर) हैं, वे अपनी जिम्मेदारी ठीक ढंग से नहीं निभाते हैं। अतः शिथिल क्षेत्राधिकारियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए।
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नगर निगम के अधिकारी शासन द्वारा प्राप्त मोबाइल नहीं उठाते हैं। अतः जो अधिकारी पब्लिक का फोन न उठाए, उसके विरुद्ध कार्रवाई होनी चाहिए। अफसरों के मोबाइल नम्बर अखबारों में बार-बार प्रकाशित किए जाने चाहिए। अन्य सुझाव बाद में प्रस्तुत करूंगा।