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गैर सरकारी व्यक्तियों से क्या देश की गोपनीयता सुरक्षित रह पायेगी?

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नरेश दीक्षित
संपादक (समर विचार)

भारत सरकार एक निर्णय के अन्तर्गत कुछ महत्वपूर्ण विभागों में संयुक्त सचिव पद पर बाहरी व्यक्तियों को बैठाने की कवायद से देश की गोपनीयता सुरक्षित रहने पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है?
केंद्र सरकार ने अभी दस विभागो में अनुभव और उनकी योग्यता के आधार पर संयुक्त सचिव स्तर के पदों पर यूपीएससी की स्वीकृत के बगैर बैठाना सिर्फ कार्पोरेट घरानों के अधिकारियों को घुसपैठ कराने का उपाय हो रहा है। यह सरकार की विफलता का एक और उदाहरण है।
10 जून 2018 को डीओपीटी (डिपार्टमेंट आफ पस॔नल एंड ट्रेनिंग) ने एक अधिसूचना जारी करते हुए 10 पदों के लिए आवेदन मांगे है यह नियुक्त अभी केवल राजस्व, वित्तीय सेवा, आर्थिक मामले, कृषि, किसान कल्याण, सड़क परिवाहन, हाईवे निर्माण, शिपिंग, पर्यावरण मंत्रालयो में होगी। वैसे
देखा जाए तो भारत सरकार की गोपनीयता लीक कर दस्तावेजों को देश के बाहर भेजने का सगल सा बन गया है। समय – समय पर समाचार पत्रो में ऐसी सुखिैयां आया करती है कि भारत की रक्षा इत्यादि से जुड़ी गोपनीय जानकारी विदेशो में बैठे दुश्मनों को मुहैया कराई जाती है।
यहाँ तक की भारत सरकार के पेट्रोलियम, रक्षा, टेली कम्युनिकेशन , वित्त विभाग की गोपनीय दस्तावेजो को चोरी करा कर अपने लाभ के लिए कार्पोरेट जगत की कई नामी गिरामी कम्पनियाँ इस काय॔ में लगी रहती है और अपने कार्पोरेट साम्राज्य को बढ़ाती रहती है।
यहाँ आप के संज्ञान के लिए भारत की गोपनीयता का एक ही उदाहरण काफी है वष॔ 1998 में देश के एक मशहूर कार्पोरेट जगत ने भारत सरकार के कई मंत्रालयो से अति गोपनीय एवं संवेदन शील दस्तावेजो की चोरी कराई थी जिसकी गूंज संसद तक पहुँची थी।
संसद में कई सांसदो ने मिलकर प्रश्न संख्या 2526 के द्वारा सरकार को इस गंभीर मामले पर जवाब देने की मांग पर तत्कालीन ग्रह मंत्री श्री लालकृष्ण अणवानी ने संसद में स्वीकार किया था कि दिल्ली पुलिस ने एक घटना की जांच के समय मेरीडिन कामर्शियल टॉवर विंडसर पैलेस कनाट पैलेस नई दिल्ली स्थित रिलांयस समूह के कार्पोरेट कार्यालय से अति गोपनीय दस्तावेजो जो राष्ट्रीय सुरक्षा से सम्बंधित अति संवेदन शील थे बरामद हुए थे ।
अपराध की गंभीरता को देखते हुए ग्रह मंत्रालय ने दर्ज एफआईआर संख्या 496/98 धाना पार्लियामेंट स्ट्रीट में द॔ज मुकदमे की विवेचना को दिनांक 12 ,11,1998 को सी बी आई को सौंप दी। सीबीआई ने दिनांक 13 , 12,1998 को अपराध सं 796/98 आर सी 9 (एस ) 98 एस आई यू पंजीकृत कर विवेचना शुरू कर दी तथा चालानी चिट बनाकर सी एम एम कोर्ट दिल्ली भेज दी इसमें रिलायंस समूह के दोनो भाईयो के साथ कम्पनी के तीन अधिकारी वी बाला सुब्रह्मण्यम, ए वी माथ्रुरामन, व शंकर अणवाल का नाम था कुछ समय पश्चात सीबीआई की लचर पैरवी के कारण दोनो भाईयो के नाम कोट॔ ने हटा दिए।
वर्ष 1998 से लेकर आज 20 वर्षो तक आफीशियल सीक्रेट एक्ट की धारा 3 /5 के अन्तर्गत यह कैस कोर्ट की फाइलो मे दब कर आज भी धूल फांक रहा है।
अब ऐसे में केन्द्र सरकार आईएएस का कैडर धीरे धीरे समाप्त कर निजी क्षेत्रो के सेवको की सेवा लेना कहा तक उचित है? क्या अब देश का कार्पोरेट अपने कारोबार को बढाने के लिए निजी सेवकों से सरकार के गोपनीय दस्तावेज सुरक्षित रह पायेंगे? सरकार को इस पर गंभीरता से मंथन कर फैसला लेना चाहिए।

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