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सपनों को संवारता “सार्थक फाउंडेशन”

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आकांक्षा दीक्षित

(लेखिका लखनऊ की जानी मानी पत्रकार है।)


शिक्षा हर बच्चे का मूल अधिकार है। इस बात की अहमियत को समझते हुए आज शहर में कई ऐसे एनजीओ चल रहे हैं जो गरीबी की मार झेल रहे बच्चों को पढ़ाने का काम करते हैं। सार्थक फाउंडेशन एक ऐसा ही एनजीओ है जो गरीब बच्चों को पढ़ा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के काबिल बनाता है। यहां बच्चों को पढ़ाई के साथ एक्स्ट्ररा करीकुलर एक्टीवीटीज में भाग लेने का मौका भी दिया जाता है।

बीटेक के पूर्व छात्रों और टीचर ने रखी नीव:

इस फाउंडेशन की नीव साल 2013 में ऐमिटी यूनिवर्सिटी से बीटेक कर चुके सुबेन्द्रू पाण्डे ने अपने दोस्तों (मानस मेहरोत्रा, रश्मी शुक्ला, मनु आकाश, श्वेता सिंह, पल्लवी पिल्लई) और टीचर समा हसतक के साथ मिल कर रखी थी। सुबेन्द्रू के लिए यह सफर आसान नहीं था।
वह बताते हैं कि बीटेक की पढ़ाई पूरी होने के बाद उनके माता-पिता का भी सपना था की उनका बेटा एक अच्छी नौकरी करके आराम की जिन्दगी जिए, पर उन्हें यह कॉमन लाइफ जीना गवारा नहीं था। वह लीग से हटकर और चुनौती पूर्ण करना चाहते थे।

कैसे की पहल:

कॉलेज के दिनों में जब सुबेन्द्रु गरीब बच्चों को इधर-उधर घूमते फिरते और भीख मांगते देखते थे तब उन्हें लगता था कि समाज इन बच्चों के साथ अन्याय कर रहा है। तभी से उनके मन में गरीब बच्चों को शिक्षित करने का सपना पलने लगा। वह कहते है कि इस सपने को पूरा करने में उनकी टीचर समा हसतक ने उनका बहुत सहयोग किया।
सुबेन्द्रू ने कॉलेज खत्म होने के बाद अपनी टीचर के सहयोग से अपने चार दोस्तों के साथ मिल कर सार्थक फाउंडेशन की शुरुवात की। उन्होंने फाउंडेन का पहला सेन्टर मल्हौर रेलवे स्टेशन के पास एक किराए के कमरे में शुरू किया। शुरू में यहां बस चार बच्चे ही पढ़ने आते थे, पर आज यह फाउंडेशन करीब 800 गरीब बच्चों को बोसिक शिक्षा दे रहा है। आज लखनऊ में सार्थक फाउंडेशन के नाम से आठ सेंटर चल रहे हैं, जिसमे से पांच सेंटर मलिन बस्तियों में हैं।

परिश्रम ने दिलाया मुकाम:

अपने इस सपने को पूरा करने के लिए सुबेन्द्रू ने कठिन परिश्रम किया। शुरू में परिवार ने भी साथ नहीं दिया। वह बताते हैं कि इस नए सफर में कोई अपना उनके साथ नहीं था। सुबेन्द्रू कहते हैं कि वह ऐसा कोई भी काम नही करना चाहते थे, जिससे उनके माता-पिता नाराज हों। इसलिए एक समय उन्होंने अपने इस सपने को भुला कर अपनों के खातिर जयपुर की एक साफ्टवियर डेवलपमेंट कम्पनी में नौकरी कर ली थी।
जयपुर में छह महीने नौकरी करने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि वह इस काम के लिए बने ही नहीं हैं और वह सारी जिंदगी एक नौकरी करके नहीं रह सकते। इसके बाद उन्होंने लखनऊ लौटने का फैसला कर लिया। यहां उन्होंने अपने माता-पिता से एक बार फिर अपने सपने के बारे में बात की और उनकी इजाजत मांगी। अन्त में  परिवार ने भी उनकी लगन को समझा और उन्हें इजाजत दे दी।

बच्चों को देते है डिजिटल एजुकेशन:

सार्थक फाउंडेशन यहां पढ़ने वाले हर बच्चे की पढ़ाई को मजेदार बनाने का पूरा ख्याल रखता है, ऐसा करने के पीछे उनका मकसद बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि पैदा करना है। समाज में डिजिटल मीडिया के बढ़ते चलन को देखते हुए यहां बच्चों को डिजिटल एजुकेशन दी जाती है। इस सिस्टम के चलते बच्चे बोर नहीं होते और मजे लेकर पढ़ाई करते हैं।

बाहरी भी करते है सहयोग:

आज यह फाउंडेशन पूरे शहर में फेमस हो चुका है। शहर के आम लोग यहां आकर गरीब बच्चों के साथ अपना जन्म दिन मनाते है और उन्हें उपहार भी देते हैं। होली के अवसर पर शहर के लोकप्रिय होटल रेनैस्संस जैसे कुछ संस्थानों ने यहां के बच्चों के साथ होली मनाई और उन्हें उपहार भी दिए।

इस एनजीओ में साल भर होने वाले त्योहारों पर लोग आते हैं और बच्चों के साथ समय बीताते हैं। इसी साल जनवरी में लखनऊ आए अभिनेता फरहान अख्तर ने भी फाउंडेशन के चिनहट सेन्टर पर पहुंच कर  बच्चों के साथ समय बिताया और उन्हें पढ़ लिख कर कुछ बनने की सलाह दी।

बदली बच्चों और अभिभावकों की सोच:

इस एनजीओ ने गरीब बच्चों के अभिभावकों की सोच भी बदली है। इसी साल हाई स्कूल की परीक्षा दे चुकी नेहा बताती हैं कि मैं पहले अपनी बस्ती के सरकारी स्कूल में पढ़ती थी, जहां सिर्फ आठवीं तक ही पढ़ाई होती थी। इसके बाद वहां की लड़कियां या तो घर के काम सम्भालती थी या फिर उनकी शादी कर दी जाती थी।
वह कहती है, पर अब हालात वैसे नहीं हैं। मेरे माता-पिता मुझे आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं और उनका सपना है कि मैं पढ़ लिख कर कुछ अच्छा करू। इस फाउंडेशन में नेहा जैसे कई बच्चे हैं जो कभी सरकारी स्कूल में पढ़ने थे पर आज वे इस फाउंडेशन में पढ़ कर अपना भविष्य सवार रहे हैं।

पढ़ाई ही नहीं बच्चों के हुनर को भी तराशता है फाउंडेशन:

यह फाउंजेशन सिर्फ बच्चों की शिक्षा पर ही जोर नहीं देता बल्कि उनके हुनर को भी तराशता हैं।  यहां बच्चों को आर्ट, डांस, बेसिक कंप्यूटर स्किल्स जैसे कई हुनर सिखाए जाते हैं। यहां पढ़ने वाले अनुज किक बाक्सिंग में स्टेट लेवल खेल चुके है,जिसमे उन्होंने पिछले साल गोल्ड मेडल जीता था।

शहर के फेमस स्कूल्स में पढ़ रहे यहां के बच्चे:

यह फाउंडेशन हर साल पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन करने वाले कुछ बच्चों का एडमिशन शहर के नामी स्कूलों में करवाता है। आज यहां के पढ़े बच्चे जयपुरिया, आरएलबी, सेन्ट मैरी जैसे बड़े स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इन बच्चों की पढ़ाई का खर्च फाउंडेशन उठाता है। कुछ स्कूल ऐसे भी हैं जो इन बच्चों की फीस माफ कर देते हैं। सुबेन्द्रु कहते हैं कि उनका सपना है कि उनकी यह मुहिम इसी तरह जारी रहे और फाउंडेशन का काम दिन प्रतिदिन बढ़ता जाए ताकि शहर में कोई भी बच्चा गरीबी के कारण शिक्षा से दूर न रह सके।

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