नरेश दीक्षित (संपादक समर विचार)
पंजाब के अमृतसर के निकट मानव निर्मित रेल घटना को हादसा बताकर केंद्र व राज्य सरकार अपना-अपना पल्ला झाड़ रहीं हैं। राजनैतिक दलों ने इस पर रोटियां सेकना शुरू कर दिया है। सरकार, नेता, अधिकारियों को जब इस बात का ही ज्ञान नहीं है कि हादसा और दुर्घटना में क्या फर्क है तो मृतकों को क्या न्याय मिलेगा? सरकार, रेल मंत्रालय अब एक ही बात बार-बार सामने ला रहा है कि आयोजकों ने कार्यक्रम की अनुमति नहीं ली।
यह मांनसिक दिवालियों पन ही है जिसे नहीं मालूम कि इस माह सम्पूर्ण उत्तर भारत में राम की लीलाऐं होती हैं और विजय दशमी के दिन दशहरा पर्व मनाया जाता है तथा सायं काल से लेकर रात्रि में रावण दहन होता है और यह परंपरा सदियों से चली आ रही है इसमें अनुमति की क्या आवश्यकता थी? ऐसा ही रावण दहन का कार्यक्रम अमृतसर के निकट जोडा रेल फाटक के नजदीक एक निजी भूमि पर हो रहा था जो प्रति वर्ष वहां होता है।
इसकी जानकारी स्थानीय प्रशासन को थी। वह मेला की सुरक्षा व्यवस्था में लगी थी। रेल प्रशासन की यह जिम्मेदारी थी कि रेल ट्रेक की रक्षा सुरक्षा के लिए कार्यरत निरीक्षण दल कहा सोता रहा जब इतना बड़ा रावण का पुतला बनाकर खड़ा किया जा रहा था तो उसकी नजर क्यो नहीं पड़ी? जिसका दहन दशहरा के दिन होना था और इसे देखने के लिए प्रति वर्ष की भांति भारी भीड़ नजदीक रेल ट्रेक के पास होगी।
रेल प्रशासन क्यो सोता रहा, क्यो नही सुरक्षा के कदम उठाए?