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विकास के चक्रव्यूह में फंसा किसान!

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नरेश दीक्षित संपादक समर विचार

दिल्ली में आयोजित दो सौ किसान संगठनों का माच॔ राम लीला मैदान में जमा हो गया है। इस किसान आंदोलन को देश की विभिन्न 21 राजनैतिक पार्टियो का भी समर्थन प्राप्त है इसमें मुख्य विपक्षी कांग्रेस भी शामिल है। बंगाल, बिहार, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, क॔नाटक, केरल, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित अन्य प्रदेश के किसान एवं उनके नेता शामिल है।
इनकी मुख्य मांग स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू कर फसल लागत मूल्य का डेढ़ गुना फसल का दाम की गारंटी और कर्ज मुक्त बनाने के लिये संसद बुलाकर कानून बनाने की है। हाल के वर्षों में फसल बीमा और कर्ज माफी को लेकर कई जुझारू आन्दोलन किसानो के हुए हैं जिसके प्रभाव में राज्य सरकारों को किसानों का क॔ज माफ करना पड़ा है।
जहाँ तक फसल बीमा का प्रश्न है उसकी स्थित काफी चिंता जनक है केंद्र सरकार ने अप्रैल 2016 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और पुनग॔ठित बेहतर फसल बीमा योजना लागू किया ताकि विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से फसलों के नुकसान की भरपाई किसानों को की जा सके।
प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना के तहत 10 जनरल बीमा कंपनियाँ फसल बीमा करती हैं लेकिन इन बीमा कंपनियों के अधिकांश जिलों में दफ्तर तक नहीं है सिर्फ हवाई योजना है लेकिन किसानों से बीमा प्रीमियम उनके खातों से अरबों रुपये वसूलती है।
वर्ष 2016 में खरीफ सीजन में किसानों से कुल 9041,25 करोड़ रूपये वसूले गए जबकि केवल 25 प्रतिशत दावों का कुल 571,10 करोड़ रूपये का निबटारा किया जो अवसत से काफी कम था। इस प्रकार कर्ज माफी एवं फसल बीमा योजनाएं किसानों के मुताबिक नहीं थी इस लिए संतोष जनक परिणाम नहीं दे पा रही है।
अगर सचमुच किसानों को आत्महत्या करने से बचना है तो  कर्ज निति एवं फसल बीमा नीति में गुणात्मक सुधार और फेर बदल करना होगा। 
किसान कृषि लागत कम करने एवं कृषि उपजों का लाभ कारी मूल्य देने की मांग काफी लम्बे समय से किसान संगठन करते रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार घोषित समर्थन मूल्य पर भी किसानों की गेंहू, धान, बाजरा, मक्का, सरसों इत्यादि की तैयार फसलें सरकार मात्र 30 प्रतिशत ही खरीदती है किसानों को समर्थन मूल्य देने के लिए तरह तरह के प्रतिबंध लगाएँ जाते हैं और उन्ही किसानों की फसल खरीदी जाती है जिनका रजिस्टेशन होता है।
जबकि भारत का अधिकांश किसान अनपढ़ है वह समय से रजिस्टेशन नहीं करा पाता है फलस्वरूप मजबूर किसान अपनी फसलों को ओने-पौने में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर होता हैं। सरकार द्वारा डंके की चोट पर किए जा रहे किसानों के साथ भेदभाव पर कहीं ज्यादा प्रतिक्रिया भी नहीं होती है मीडिया भी खामोश रहती हैं।
एक उदाहरण देखिए गुजरात सरकार नैनो प्लांट लगाने के लिए टाटा को 558,58 करोड़ रूपये का कर्ज मात्र 0.1प्रतिशत ब्याज पर दिया जिसे 20 सालों में लौटने की बात है। जमीन एवं अन्य रियायते अलग से।
इसी तरह मित्तल को पंजाब सरकार ने भटिंडा में रिफाइनरी में निवेश के लिए 1200 हजार करोड़ का कर्ज 0.1 प्रतिशत ब्याज पर दिया जाता है वही देश के अंनदाताओ को 12 प्रतिशत से भी अधिक ब्याज दर पर भी क॔ज नहीं मिलता साथ ही उनके कर्ज भी माफ नहीं होते जबकि कारपोरेट घरानों के माफ कर दिए जाते है।
रही बात सबसिडी की तो उसका बड़ा हिस्सा बीज, खाद, कृषि उपकरण में लगे उद्योग पति हथिया लेते हैं। इस तरह  कर्ज और सबसिडी का बड़ा हिस्सा कृषि आधारित कंपनियाँ डकार जाती हैं। पुरे देश में किसानों की बदहाली का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि अब तक 3 लाख से अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं।
किसानों के मुद्दे कहीं से भी सरकार की प्राथमिकता में है ही नहीं। देश के मजबूर किसान मोदी सरकार को जगाने के लिए बार-बार दिल्ली आना पड़ता है लेकिन कारपोरेट पसंद यह सरकार किसानों की बदहाली पर ध्यान ही नहीं देती।

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