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पंचपोखर आने पर नहीं होता सर्प विष का असर

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  • कलयुग के आरंभ में पांडव पुत्र जनमेजय ने किया था नागयज्ञ

  • यज्ञकुंड से सर्पो की अनगिनत अवशेष दावे को करते है प्रमाणिक

औरैया। पौराणिक कथाओ में जिस पंचपोखर (Panch Pokhar) नामक स्थान पर जनमेजय द्वारा किये गये नागयज्ञ का उल्लेख होता है। वह स्थान आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। पर्यटन स्थल बनाने की जनब्यापक मांग ने यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में तो बढोत्तरी कर दी है मगर वैश्विक पटल पर आज भी इसकी प्रासंगिकता गुमनामी के अंधेरों में गुम होकर रह गई है। पंचपोखर पर आने पर सर्पदंश से पीडित का विष बेअसर हो जाता है।
जिला मुख्यालय से 25 किमी दूर दक्षिण दिशा में बसे कस्बा जाना के पास स्थित पंचपोखर (Panch Pokhar) का नाम धर्मग्रंथो में मिलता है। महाभारत का युद्ध समाप्त होते ही पांडव अर्जुन ने राजकाज की बागडोर अपने पुत्र परीक्षित को सौंप दी। और स्वयं पांडव पुत्रों के साथ तपस्या करने हिमालय को कूच कर गये।

इधर लंबे समय तक शासन सुख भोगने के बाद किन्हीं कारणों से राजा परीक्षित को नागराज तक्षक ने अपने जहरीले विष का दंश देकर पूर्व जन्म का बदला चुकाया तो परीक्षित पुत्र जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए संपूर्ण धरा से नागजाति के समूल नाथ का संकल्प ले लिया।

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