Tevar Times
Online Hindi News Portal

मैला ढोने के विरोध में दलित महिलाओं ने विधानसभा के सामने निकाला स्वाभिमान मार्च

0

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में आज भी जारी सिर पर मैला ढोने (मानव मल उठाने) की कुप्रथा के विरोध में मानवाधिकार दिवस पर रविवार को मैला ढोने वाली दलित महिलाओं (Dalit Women) ने विधान सभा के सामने डलिया-झाड़ू के साथ दस्तक दी।

जनपद जालौन के गांवों में मैला उठाकर अपनी आजीविका चलाने वाली वाल्मीकि महिलाओं ने बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के नेतृत्व में राजधानी आकर दलित अधिकार व स्वाभिमान मार्च निकाला और मैला प्रथा को बंद कराने व स्थाई पुनर्वासन के लिए गुहार लगाई। महिलाओं का यह कहना था कि आखिर हमें कब मिलेगी मैला ढ़ोने से मुक्ति।

बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के संयोजक कुलदीप कुमार बौद्ध ने आईपीएन से बातचीत में कहा कि पूरे देश व प्रदेश में स्वच्छ भारत मिशन का डंका बज रहा है वहीं बुन्देखंड में हजारों दलित महिलाएं आज भी हाथ से मानव मल (मैला) उठाकर अपने पेट की भूख को शांत करने को मजबूर हैं लेकिन शासन-प्रशासन पूरी तरह मौन बना हुआ है।

कहा कि वैसे तो मैला प्रथा बंद करने को लेकर पूरे देश में “हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वासन अधिनियम 2013” लागू है, लेकिन बुंदेलखंड के जालौन जिले की सैकड़ों वाल्मीकि महिलायें अपने-अपने गावं में सुबह उठकर मानव मल उठाती हैं।

बाद में शाम को उनके घर से रोटी मांगने जाती हैं और उसी को खाकर अपने परिवार के पेट की भूख को शांत करती हैं।

कुलदीप ने कहा कि बेहद शमर्नाक है कि आजादी के 70 साल बाद भी हमारी दलित महिलाओं (Dalit Women) को मैला उठाने को मजबूर होना पड़ रहा है। एक तरफ तो गावं गली से लेकर पूरे देश में स्वच्छ भारत मिशन के चर्चे हो रहे हैं वहीं जिम्मेदार लोगों को ये काम दिखाई नहीं पड़ रहा।

जब तक ये कुप्रथा बंद नहीं होगी ये सारे अभियान निरर्थक साबित होंगे। उन्होंने कहा कि मंच ने बुंदेलखंड में आज भी जारी मैला ढ़ोने की कुप्रथा पर जो स्टडी की है उसको लेकर कोर्ट तक जायेंगे और जब तक की इनका स्थाई पुनर्वासन नहीं होता तब तक इन मैला ढ़ोने वाली महिलाओं के अधिकार व स्वाभिमान के लिए लगातर संघर्ष करेंगे।

इस दौरान बुंदेलखंड के जालौन जिले के मंगरोल गावं की सत्तो देवी, बेटी बाई, फूलनदेवी, दहेलखंड की मुन्नी, निपनिया की बुद्धश्री, उदनपुर की गुड्डी, हरचंदपुर की श्यामा, लुहर्गावं की लालकुवर, बागी की सुखबासी, निभाना की जुली, गिरजा व प्रभा ने कहा कि साहब हमारी पूरी जिन्दगी ये मैला ढोते-ढोते निकली जा रही है, इसे बंद करा दो और हमें जीने का कोई और सहारा दे दो ताकि अपनी बची हुई जिन्दगी आराम से कट सकें।

सर्वे में आया सामने –

मंच के संयोजक कुलदीप कुमार बौद्ध ने बताया कि सर्वे में यह सामने आया है कि बुंदेलखंड के जालौन जिले में बड़े पैमाने पर मैला ढ़ोने की कुप्रथा जारी है। मैला ढ़ोने वाली सभी महिलायें बीमारी की शिकार हैं। गावं में इन महिलाओं के साथ बड़े पैमाने पर छुआछुत व भेदभाव होता है।

इस समुदाय के बच्चों के साथ स्कूल में भेदभाव होता है, इसकी बजह से बच्चे स्कूली शिक्षा से बाहर हैं। सर्वे के मुताबिक, इन समुदायों के पास अपनी आजीविका के लिए अन्य कोई साधन नहीं है।

Leave A Reply

Your email address will not be published.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More