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न्याय मिलने में देरी भी एक तरह का अन्याय : राष्ट्रपति

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इलाहाबाद। न्याय-पालिका की स्वतन्त्रता हमारे लोकतन्त्र की आधारशिला है। संविधान के अनुरूप, अपने स्वतंत्र और भय-मुक्त योगदान द्वारा हमारी न्याय-पालिका ने पूरे विश्व में एक लोकतन्त्र के रूप में भारत की साख बढ़ाई है।

न्याय पालिका ही सबका सहारा होती है। फिर भी देश का सामान्य नागरिक भरसक न्यायालय की चौखट खटखटाने से बचना चाहता है। इस स्थिति को बदलना जरूरी है। यह बात आज राष्ट्रपति (President) रामनाथ कोविन्द ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ‘न्याय ग्राम परियोजना’ के शिलान्यास समारोह के अवसर पर कही।

राष्ट्रपति (President) ने कहा कि समय से सभी को न्याय मिले, न्याय व्यवस्था कम खर्चीली हो, सामान्य आदमी की भाषा समझ में निर्णय देने की व्यवस्था हो, और खासकर महिलाओं तथा कमजोर वर्ग के लोगों को न्याय मिले, यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है।

श्री कोविन्द ने कहा कि न्याय मिलने में देर होना भी एक तरह का अन्याय है। गरीबों के लिए न्याय-प्रक्रिया में होने वाले विलंब का बोझ असहनीय होता है। इस अन्याय को दूर करने के लिए हमें कार्य स्थगन से परहेज करना चाहिए। कार्य स्थगन तभी हो जब और कोई चारा न हो।

राष्ट्रपति ने कहा कि पूरे देश के न्यायालयों में लगभग तीन करोड़ मामले पेंडिंग हैं। इनमे से लगभग चालीस लाख मामले उच्च-न्यायालयों में पेंडिंग हैं, और इनमे से भी छ लाख मामले ऐसे हैं जो दस साल से भी अधिक पुराने हैं।

मुझे यह जानकर खुशी हुई है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपनी निचली अदालतों में लंबित लगभग साठ लाख विवादों को अगले कुछ वर्षों में शून्य के स्तर पर लाने का लक्ष्य रखा है।

श्री कोविन्द ने कहा कि अन्य राज्यों द्वारा वादों के निपटान के लिए लक्ष्य निर्धारित कर निपटान किए जाने का उदारण देते हुए कहा कि मुझे आशा है कि उत्तर प्रदेश में भी नियत समायावधि में ऐसे लक्ष्य हासिल कर लिए जाएंगे।

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