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मिलार्ड ये क्या किया..?

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दिनेश दुबे (स्वतंत्र पत्रकार)
न्यायिक व्यवस्था के लिये पूरे विश्व में अपनी अलग पहचान रखने वाली भारत की सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) के कर्ता-धर्ता के भटक गए हैं ..? असंख्य लोगों की धारणा को धूल-धूसरित करने का अधिकार आखिर इन्हें किसने दिया ये सोचनें की बात है । मतभेदों को लेकर मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ़ मीडिया के सामने जाने वाले न्यायाधीशों की बीते एक दिवस जिस तरह से “सोशल मीडिया” में हंसी हो रही वह बेहद तकलीफ़ देय है।
 यही नहीं देश के सभी संचार माध्यमों में देश की इस अनोखी घटना पर तर्क-वितर्क किये जा रहें हैं। कहने और समझने का आशय यह है कि कुछ विध्वसंक तत्व तो इस मुद्दे पर कुतर्कों के जरिये देश की अस्मिता को ही दांव पर लगाने में जुट चुके हुए हैं।
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शायद उनकी स्वार्थ की लालसा इस कदर बढ़ चुकी है कि कुछ भी हो बस ..उन्हें किसी तरह सत्ता की मलाई चाटने को मिल जाये। ऐसे लोग इस मुद्दे को गरमाने की फ़िराक में हैं और उन्हें यह मुद्दा बिल्ली के सामने छींका टूटने जैसा दिखाई दे रहा है।
अभी साल भर पहले ही देश में अहिष्णुता का मुद्दा उठा था तब भी कुछ मौक़ापरस्त लोगों नें देश को बदनाम करने की नाक़ाम कोशिश की थी। दर असल देश की राजनैतिक उठापटक और सत्ता-संघर्ष में वे लोग भी किसी न किसी रूप में शामिल होते हैं जो ऊपर से तो ग़ैर राजनैतिक होने का चोला ओढ़े होते हैं, और असल में वही लोग राजनेताओं के  “गुरु-घन्टाल” अर्थात चाणक्य होते हैं।
उन्हें अपनों की पराजय हज़म नहीं हो पाती । फलस्वरूप वे या तो इस तरह के मौकों की तलाश में रहते हैं या फिर ऐसा घटनाक्रम तैयार कर देते हैं जिससे किसी न किसी तरह से देश का माहौल बिगड़े और उनके अनुयायियों को बिगड़े हुए माहौल का फ़ायदा उठाने का मौक़ा मिल सके।
supreme court
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हिंदुस्तान का हर नागरिक इस बात से अब भली -भांति परिचित हो चुका है। लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलाने वाले लोग आज के इस दौर में भी देश की जनता को बेबकूफ़ समझकर खुद की बेबकूफी का परिचय देने से बाज़ नहीं आ रहे हैं।

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