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संविधान की पवित्रता को कर रही भंग : मायावती

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लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मुखिया मायावती (Mayawati) ने न्यायपालिका में आपसी मतभेद के लिए परोक्ष रूप से केंद्र की मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि केंद्र सरकार भाजपा की नहीं आरएसएस की सरकार है और उसकी विघटनकारी सोच संविधान की पवित्रता को भंग कर रही है।

Modi government disrupts constitutionalism: Mayawati
Modi government disrupts constitutionalism: Mayawati

बसपा मुखिया मायावती (Mayawati) ने सोमवार को यहां पार्टी मुख्यालय में अपना 62वां जन्मदिन मनाया। इस मौके पर आयोजित प्रेस वार्ता में पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि मोदी सरकार के मंत्री संवैधानिक व कानूनी-व्यवस्था को तहस-नहस करने में सक्रिय हैं। तभी तो मोदी जी के मंत्री यह कहने से गुरेज नहीं करते कि बहुत जल्दी ही देश के संविधान को बदल दिया जायेगा।

उन्होंने ऐसा कहने वाले मंत्री को प्रधानमंत्री को तुरन्त ही बर्ख़ास्त किया जाना चाहिये था लेकिन ऐसा नहीं किया गया, क्योंकि ऐसे मंत्री को तो आर.एस.एस. विशेष तौर से सम्मानित ही करेगी।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार व बीजेपी जातिवादी व कट्टरवादी ज़हरीले तत्वों से भरी पड़ी हुई है। ऐसे ही मंत्री व नेताओं की सोच व मंशा को ध्यान में रखकर ही संविधान निर्माता डा. अम्बेडकर ने कहा था कि कोई भी संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता, बल्कि संविधान का अच्छा या बुरा होना इस बात पर निर्भर करता है कि उस पर अमल करने वाले लोग कैसे हैं। उनकी नीयत अच्छी है या बुरी।

बसपा मुखिया ने कहा कि अब वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार, बीजेपी व एन.डी.ए. की सरकार ना होकर पूरे तौर से आर.एस.एस. की सरकार ही होकर रह गई है।

सरकार आरएसएस (RSS) की नफरत व विघटनकारी सोच के मुताबिक ही अब संवैधानिक व लोकतांत्रिक संस्थानों को भी किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करके हर वह काम करने की कोशिश मोदी सरकार की ओर से की जा रही है, जो संविधान की मंशा के खिलाफ है तथा उसकी पवित्रता को भंग करता है। उन्होंने चिन्ता जताते हुए कहा कि ऐसी चुनौतीपूर्ण स्थिति में देश की संवैधानिक व लोकतांत्रिक संस्थायें अपनी असली ज़िम्मेदारी किस हद तक निभा पायेंगी यह तो आगे आने वाला वक्त ही बतायेगा।

लेकिन यह भी एक ऐतिहासिक सच है कि एक समय में जब विपक्ष लगभग ना के बराबर रह गया था, तो तब उस समय न्यायपालिका विपक्ष की भूमिका अदा कर रहा था। तब देश निश्चिन्त था कि अपने देश में लोकतंत्र की जड़ें काफी मजबूत हैं, लेकिन अब न्यायपालिका खुद ही आपस में भिड़ी हुई है जो यह काफी चिन्ता की भी बात है।

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