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संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा से खेल क्यों ?

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प्रभुनाथ शुक्ल

देश की सर्वोच्च अदालत इन दिनों सुर्खि़यों में है। पिछले दिनों चार न्यायाधीशों ने मीडिया में अपनी बात क्या रखी भूचाल गया। संवैधानिक संस्थाओं (Constitutional Institutions) की नींव हिलने लगी। राजनीति के बयानवीर खुल कर न्यायाधीशों के समर्थन और सरकार के विरोध में खड़े हो गए हैं। पूरा देश विचारधाराओं के दो सिरों दक्षिणपंथ और वामपंथ में विभाजित हो गया। सोशलमीडिया पर शीतयुद्ध छिड़ गया है।

What is the reason of constitutional institutions dignity?
What is the reason of constitutional institutions dignity?

सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। राजनेता और दूसरी हस्तियां ट्वीट पर ट्वीट कर रही हैं। पूरे देश में यह मसला बहस का विषय बन गया है। टीवी पर डिबेट की बाढ़ आ गई है। ऐसा लगने लगा है कि जैसे देश में कोई दूसरी समस्या ही नहीँ है। इस विषय पर शोर मचाने की क्या ज़रूरत है। विषय अदालत से जुड़ा है, जिसका निर्णय वहीं करेगी। अदालत एक संवैधानिक संस्था है, उस पर राजनीतिक विरोध और सरकार को घेरने से क्या होगा।

सर्वोच्च अदालत के चार जज जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस कुरियन जोसेफ़ ने शुक्रवार को अपने आवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में देश के सामने जो बात रखी गौर उस पर होना चाहिए था, लेकिन बहस की दिशा राजनीति की तरफ़ मुड़ गई।

जस्टिस जे चेलमेश्वर ने कहा, हम चारों इस बात पर सहमत हैं कि इस संस्थान को बचाया नहीं गया तो इस देश में या किसी भी देश में लोकतंत्र ज़िंदा नहीं रह पाएगा। स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका अच्छे लोकतंत्र की निशानी है। चूंकि हमारे सभी प्रयास बेकार हो गए, यहां तक कि आज सुबह भी हम चारों जाकर चीफ़ जस्टिस से मिले, उनसे आग्रह किया।

लेकिन हम अपनी बात पर उन्हें सहमत नहीं करा सके। इसके बाद हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचा कि हम देश को बताएं कि न्यायपालिका की देखभाल करें। मैं नहीं चाहता कि 20 साल बाद इस देश का कोई बुद्धिमान व्यक्ति ये कहे कि चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन लोकुर और कुरियन जोसेफ़ ने अपनी आत्मा बेच दी है।

सुप्रीमकोर्ट के जजों की तरफ़ से मीडिया में जो बात सार्वजनिक रुप से की गई वह इतनी गम्भीर भी नहीँ थी जिसे आपस में न सुलझाया जा सकता था। हालाँकि उनकी तरफ़ से यह बात साफ की गई कि उनकी तरफ़ से किए गए सारे प्रयास विफल रहे। क्योंकि सभी ने अपनी बात मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के सामने रखी, लेकिन कोई सकारात्मक पहल नहीँ हुईं।

जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि वे मजबूर होकर मीडिया के सामने आए हैं। जब पत्रकारों ने यह पूछा कि क्या आप मुख्य न्यायाधीश के ख़लिफ़ महाभियोग चलाना चाहते हैं तो जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि ये देश को तय करना है।

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