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गांधी का अध्यात्म आज के ’पाखंड’ से बिल्कुल अलग : डॉ़ सुजाता

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मनोज पाठक 

पटना। गांधीवादी लेखिका व समाजसेवी डॉ़ सुजाता चौधरी का कहना है कि महात्मा गांधी की प्रासंगिकता कल भी थी, आज भी है और कल भी रहेगी। गांधी की जीवनी ’महासागर है और आज धर्म और अध्यात्म के नाम पर जो पाखंड है, उससे गांधी का अध्यात्म बिल्कुल अलग है।

मानवता को सही मायने में समझने के लिए युवाओं को गांधी साहित्य पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी विज्ञान पढ़ना चाहती है, लेकिन इतिहास नहीं। यह चिंता की बात है। ज्ञान बढ़ाने और महापुरुषों को जानने के लिए पुस्तकों का अध्ययन जरूरी है।

डॉ़ सुजाता ने महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह के संपूर्ण इतिहास को अपने शब्दों में पिरोया है और गांधी से जुड़ी सात किताबें भी लिखी हैं। उन्होंने आईएएनएस के साथ विशेष बातचीत में कहा, आज पर्यावरण की समस्या हो या युद्ध की स्थिति, सभी ज्वलंत समस्याओं का समाधान गांधी के रास्ते पर ही चलकर ढूंढा जा सकता है।

बिहार में शराबबंदी लागू होने की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी न केवल शराब की, बल्कि पूरी तरह नशाबंदी के पक्ष में थे। गांधी का मानना था कि तंबाकू की खेती भी बंद होनी चाहिए। आज तंबाकू की खेती से किसानों को जितनी आय नहीं होती, उससे ज्यादा तंबाकू से होने वाले कैंसर के इलाज में खर्च हो जाता है।

डॉ़ सुजाता ने कहा, महात्मा गांधी को बिहार लाने वाले चंपारण जिले के निलहा (नील की खेती करने वाले) किसान राजकुमार शुक्ल पर लिखा गया उपन्यास ’सौ साल पहले पटियाला के पंजाबी विश्वविद्यालय में शोध के लिए चुना गया है, जबकि ’बापू और स्त्री’ नामक किताब पर डॉक्युमेंट्री फिल्म भी बन रही है।

लेखिका ने कहा, किसी भी एक लेखक के लिए गांधी के संपूर्ण व्यक्तित्व को लिख देना आसान नहीं है। गांधी पर मेरी कई पुस्तकें आई हैं- बापू और स्त्री, महात्मा का अध्यात्म, गांधी की नैतिकता, गांधी और सुभाष, गांधी और भगत सिंह.. इन सबमें मैंने अलग-अलग विषयों को उठाया है।

युवाओं में इतिहास के प्रति दिलचस्पी कम होने को लेकर चिंतित डॉ़ सुजाता ने कहा कि आज के युवा इतिहास कम पढ़ते हैं, लेकिन उस पर बातें ज्यादा करते हैं। यहीं पर भ्रम पैदा होता है। अच्छी पुस्तकों को सच्चा दोस्त बताते हुए उन्होंने कहा कि इंटरनेट से युवाओं का ज्ञानवर्धन नहीं हो सकता।

ज्ञान बढ़ाना है, तो बच्चे किताबें पढ़ें। अपने महापुरुषों को जानना है, तो उस समय की लिखी पुस्तकों का अध्ययन करें। लेखिका ने केवल गांधी को ही अपने लेखन का विषय नहीं बनाया है। उन्होंने दुख भरे सुख, कश्मीर का दर्द, दुख ही जीवन की कथा रही और प्रेमपुरुष जैसे चर्चित उपन्यास भी लिखे हैं।

बिहार के मिथिला क्षेत्र समस्तीपुर के रहनेवाले डॉ़ इंद्रदेव शर्मा व सुशीला शर्मा की बेटी डॉ़ सुजाता चौधरी न केवल साहित्यकार हैं, बल्कि समाजसेवा में भी उनका उल्लेखनीय योगदान माना जाता है। वह कहती हैं, मेरा योगदान समाज को शिक्षित करे, महिलाओं को सशक्त करे और बुजुर्गो का सम्मान हर दिल में पैदा कर दे, यह बहुत बड़ी बात होगी।

भागलपुर के चिकित्सक डॉ़ अमरेंद्र नारायण चौधरी की पत्नी डॉ़ सुजाता चौधरी श्री रास बिहारी मिशन न्यास की संस्थापक प्रबंधन्यासी भी हैं। यह न्यास महिलाओं को रोजगारपरक प्रशिक्षण, ग्रामीण बच्चों के लिए न्यूनतम शुल्क पर विद्यालय का संचालन, विधवा तथा परित्यक्ताओं को पूंजीगत अनुदान, वृंदावन में धर्मार्थ गृह आश्रय का संचालन जैसे कार्य करता है। इसके अलावा भी शिक्षा के क्षेत्र में वह कई काम कर रही हैं।

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