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अनौपचारिक वार्ता का अनुकूल अंजाम

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डॉ दिलीप अग्निहोत्री

अंततः बिना एजेंडे की शिखर वार्ता का प्रयोग कारगर रहा। भारत और चीन के बीच आपसी विश्वास बहाल हुआ। चीन ने भारत के साथ संवाद और अच्छे संबन्ध रखने का महत्व स्वीकार किया। कहा गया कि द्विपक्षीय संबंधों का नया अध्याय शुरू हुआ है।
ये सकारात्मक रूप में आगे बढ़ते रहेंगे। दो दिन में छह वार्ताएं हुई। यह सकारात्मक बदलाव को रेखांकित करता है। भविष्य में इसके बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते है। चीन के सर्वोच्च शासक जिनपिंग ने कहा कि दुनिया में शांति और स्थायित्व के लिए दोनों देशों के बेहतर रिश्ते जरूरी है।
अगले वर्ष ऐसी ही यात्रा पर जिनपिंग भारत आएंगे। इस मुलाकात में दोनों देश आर्थिक और व्यापारिक सहयोग बढ़ाने पर भी सहमत हुए है। लेकिन इस महत्वपूर्ण यात्रा पर भारत की विपक्षी कांग्रेस पार्टी की प्रतिक्रिया अवश्य निराशाजनक रही। यह तय हुआ कि उसके वर्तमान नेतृत्व से राष्ट्र हित से जुड़े विषय पर भी गंभीर टिप्पणी की उम्मीद नहीं कि जा सकती।
प्रायः दो देशों के बीच शिखर वार्ता का औपचारिक एजेंडा होता है। लेकिन जब रिश्तों की बर्फ में भी जड़ता आ गई हो तो, तो बिना एजेंडे के वार्ता का तरीका ज्यादा कारगर होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन यात्रा में इसी मार्ग का अनुसरण किया। रिश्तों की कुछ बर्फ पिघले, तब आगे बढ़ने मार्ग बनेगा।
मोदी की यात्रा में यही देखा गया। चीन ने ठीक कहा था कि मोदी का ऐसा स्वागत होगा कि भारत चौक जाएगा। उसने ठीक कहा था। राष्ट्रपति जिनपिंग वुहान पहुंचे। मोदी के लिए अपने अन्य कार्यक्रम छोड़ दिये। पूरे समय उनके साथ रहे।  चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कम्युनिस्ट शासन पर एकाधिकार कायम हो चुका है।

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