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जनप्रतिनिधियों से बंगला मोह छुडवाने की कोशिश

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रमेश ठाकुर
बंगला बेदखली के आदेश पूर्व में भी कई मर्तबा आए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट मौजूदा आदेश नजीर साबित हो इसकी दरकार है। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने अपने कार्यकाल में आज से करीब दो-ढाई वर्ष पहले सूबे के सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को ताउम्र सरकारी बंगलों में रहने को लेकर एक कानून बनाया था जिसमें व्याख्या दी गई थी, कि सभी पूर्व मुख्यमंत्री जिंदगी भर आवंटित बंगलों में रह सकेंगे।
इसमें सभी पार्टियों के पूर्व मुख्यमंत्री शामिल थे। वर्तमान के गृहमंत्री राजनाथ सिंह व राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह से लेकर बसपा प्रमुख मायावती भी। अखिलेश के फैसले पर उस वक्त किसी ने ज्यादा विरोध नहीं किया था। विरोध इसलिए भी नहीं किया था कि उसमें सभी का हित शामिल था।
Ex-UP Chief Ministers Can't Stay In Official Bungalows: Supreme Court
Ex-UP Chief Ministers Can’t Stay In Official Bungalows: Supreme Court
लेकिन अखिलेश यादव के बनाए उस कानून को जब एक एनजीओ की तरह से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो मामला पूरी तरह से पलट गया। सुप्रीम कोर्ट ने स्वयंभू कानून को अवैध घोषित कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि जिस तरह सरकारी कमर्चारी अपनी सेवा खत्म करने के बाद आवंटित सरकारी घर और सुविधाएं छोड़ देते हैं उसी तरह पूर्व मुख्यमंत्रियों को भी स्वेच्छता से सरकारी संपत्तियों का त्याग कर देना चाहिए।
लेकिन राजनेता अपनी ठीटता दिखाने से बाज नहीं आते। बंगलों पर क्रब्जा जमाए बैठे लोगों पर सुप्रीम कोर्ट ने कई तल्ख टिप्पणियां की। मामले की सुनवाई 13 मई को होनी है। दरअसल सरकार का हिस्सा बन जाने के बाद हमारे राजनेता हर एक सरकारी संपत्ति को अपनी जागीर समझने लगते हैं। उनकी सत्ता-सुख की ऐसी आदत पड़ जाती है जिससे वह बाहर नहीं निकल पाते। सत्ता में रहें या न रहें, उनको वही ठाठ चाहिए।

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