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चार घोड़ों को मौत की सजा देने की तैयारी में जुटा प्रशासन

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  • मानव जीवन की सुरक्षा के लिए मौत की सजा पायेंगे चार घोडे़
  • न्यूजीलैण्ड के बाद भारत में भी बढा वायरस का खतरा
अंबेडकरनगर। मवेशियों में फैलने वाली खरतनाक बीमारी जब उनसे इंसानों तक पहुचने लगती है तब सरकार भी मुसीबत में पड़ जाती है। ऐेस में उसे न चाहते हुए भी ऐसा फैसला लेना पड़ता है जिसे आसानी से सोचा नहीं जा सकता।
गत दिवस न्यूजीलैंड में गायों से माइकोप्लाज्मा बोविस नामक एक खतरनाक बीमारी के वायरस तेजी से फैलने की स्थिति में वहां की सरकार ने जिस तरह सवा लाख से अधिक गायों को मारने का फैसला किया है। ठीक उसी तरह भारत में अब एक खतरनाक वायरस का खतरा बढ़ गया है।
जिससे बचने के लिए जिले में चार घोड़ों को मौत की सजा देने की तैयारी की गयी है। क्योंकि इनसे मानव जीवन को बड़ा खतरा होने जा रहा है। अब तक नागरिकों को विभिन्न अपराध में मौत की सजा दी जाती रही है, लेकिन पहली बार जिले में पशुओं को सजा-ए-मौत का फरमान सुनाया गया है।
इसमें एक खच्चर व तीन घोड़ों को मारकर उनको मौत के घाट उतार दिया जाएगा। इसकी तैयारी जिला प्रशासन व पशुपालन विभाग ने पूरी कर ली है। बताते चलें कि घोड़ों, गधों व खच्चरों में संक्रामक रोग ग्लैंडर्स फार्सी बीमारी तेजी से पांव पसार रही है। इस गंभीर बीमारी का कोई टीका व इलाज नहीं है।
सबसे खराब स्थिति यह है कि यह बीमारी पशुओं से मनुष्यों में असानी से फैल जाती है। इस कारण इसकी रोकथाम एवं जागरूकता के लिए पशुपालन विभाग ने कर्मियों का प्रशिक्षण कराकर बीमार पशुओं की जांच कराने का निर्देश दिया है।
सभी पशु चिकित्साधिकारी अपने क्षेत्र के अंतर्गत प्रतिमाह आठ गांवों में ग्लैंडर्स बीमारी की निगरानी करते चले आ रहे हैं। इसी क्रम में जिले से प्रति माह 30 घोड़ों के खून का नमूना राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान संस्थान हिसार (हरियाणा) भेजा जाता है।
वहीं गत माह भेजे गए नमूनों में भीटी ब्लॉक के चार घोड़ों में ग्लैंडर्स फार्सी बीमारी का लक्षण जांच में पाया गया है। अब यह बीमारी अन्य पशुओं के साथ मनुष्यों में न फैले इसलिए अब इन चारों घोड़ों को मौत के घाट उतारा जाना निश्चित कर लिया गया है।
इस संबंध में उप मुख्य पशुचिकित्साधिकारी डॉ. संजय कुमार शर्मा ने बताया कि चारों घोड़ों को मारने की कागजी कार्रवाई पूर्ण कर ली गई है। जिलाधिकारी के अलावा विभागीय अधिकारियों से अनुमति मिल गई है। जल्द ही घोड़ों को मारकर गड्ढे में दफना दिया जाएगा।

बीमारी के बावत क्या कहते हैं चिकित्सक 

उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी संजय कुमार शर्मा ने बताया कि यह बीमारी पशुओं से मनुष्यों में फैल सकती है जो सबसे घातक होती है। इस बीमारी के लक्षण पशुओं के त्वचा में फोड़े व घुमडियां निकलना, नाक के अंदर से फटे हुए छाले दिखना, तेज बुखार, नाक से पीला कनार स्राव आना व सांस लेने में तकलीफ आदि शामिल है।
उन्होंने बताया कि इस रोग का अब तक इलाज नहीं है। इसलिए लक्षण दिखते ही पशुपालन विभाग में संपर्क करना होगा। अक्सर देखा गया है कि ग्लैंडर्स फर्सी का संक्रमण काल कई दिनों से लेकर कई सप्ताह का होता है। मनुष्यों का ग्लैंडर्स उग्र और जीर्ण दोनों प्रकार का होता है।
उग्र ग्लैंडर्स बड़ी तेजी से बढ़ता है। रोग जाड़ा, तेज बुखार और कमजोरी से शुरू होता है। त्वचा में जीवाणु के प्रवेश स्थान पर ग्रंथि बनती है जो फूटकर एक पीड़ायुक्त अल्सर का रूप धारण करती है। इसका किनारा सीमांकित और जल्दी नहीं भरने वाला होता है।
लसीकावाहिनी और रक्तवाहिनी नलियां संक्रमण को क्षेत्रीय लसीक गांठों, उपत्वचीय और उपश्लेष्मिक ऊतकों, मांसपेशियों, फेफड़ों एवं दूसरे आभ्यंतरिक अंगों तक पहुंचा देती हैं। घाव बड़े होकर आपस में मिलते हैं और बीच में गल जाते हैं। बाहरी ग्रंथियां फोड़े के रूप ले लेती हैं परंतु भीतरी फोड़े ज्यादातर नालीदार घाव बनाते हैं।
यकृत एवं तिल्ली में शोथ और वृद्धि हो जाती है। त्वचा पर अल्सर पहले धब्बेदार चकत्ते जैसे दिखते हैं। दूसरी अवस्था में फफोले बनकर अल्सर में बदल सकते हैं। इसकी तीन अवस्थाएं होती हैं। अधिकांश अवस्थाओं में एक से तीन सप्ताह में रोगी की जीवनलीला खत्म हो जाती है।

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