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सड़कों पर भटक रहा मासूम बचपन, श्रम विभाग भी जिम्मेदार

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भीख मांगना एक बन चुका है धंधा

लखीमपुर खीरी। आज बारह जून है यानी कि विश्व बालश्रम दिवस। यहां कानून तो बनाया गया है कि चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम करवाना अपराध है लेकिन कारखानों, बस स्टैंडों, रेलवे स्टेशनों, होटलों, ढाबों पर काम करने से लेकर कचरे के ढेर में कुछ ढूंढता मासूम बचपन आज न केवल 21वीं सदी में भारत की आर्थिक वृद्धि का एक काला चेहरा पेश करता है बल्कि आजादी के करीब 7 दशकों बाद भी सभ्य समाज की उस तस्वीर पर सवाल उठाता है जहां हमारे देश के बच्चों को हर सुख सुविधाएं मिल सकें।
सहायक श्रम अधिकारी का कहना है कि विभाग द्वारा शहर भर में छापेमारी का अभियान चलाया जाता है। जहां भी नाबालिक बच्चे काम करते मिलते हैं उस पर कार्रवाई की जाती है।

क्या है बाल मजदूरी के मायने 

ऐसा कोई भी बच्चा जिसकी उम्र 14 वर्ष से कम हो और वह अपनी जीविका के लिए काम करे तो बाल मजदूर कहलाता है। अक्सर बाल मजदूरी की चपेट में वे बच्चे आते हैं जो या तो गरीबी से जूझ रहे होते है या फिर किसी लाचारी या माता पिता की प्रताडना का शिकार हो जाते हैं।
आज विश्वभर में करीब 215 मिलियन बच्चे बाल मजूदरी का शिकार हैं जिनमें से सबसे अधिक भारत में मौजूद हैं। भीख मांगना एक धंधा बन चुका है, यह धंधा पर गंदा है।
शायद भारत ही एक ऐसा देश है, जहां मासूम बचपन सड़कों पर भटक रहा है। फिर इसे कैसे यकीनी बनाया जाए कि यह बचपन बड़ा होकर मुजरिम या नशेड़ी नहीं बनेगा?
भले ही सरकार व प्रशासन ही इस बारे में पूरी तरह जिम्मेदार हैं, परन्तु कोई भी अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं। समय की जरूरत है कि इस मामले को बाल मजदूरी से भी पहले उठाया जाए।

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