Tevar Times
Online Hindi News Portal

ब्राह्मण चेहरा दिखाने के लिए डाक्टर अनूप चन्द्र पाण्डेय की नियुक्ति!

0

नरेश दीक्षित (संपादक समर विचार)


योगी सरकार की मंगलवार को होने वाली रूटीन कैविनेट बैठक इस बार बुधवार यानी 27 जुलाई को हुई और पहली बार एक नई परम्परा डाली गई कि जो काय॔ या विशेषाधिकार मुख्यमंत्री को था उसे भी कैविनेट से मोहर लगवा कर श्री अनूप चन्द्र पाण्डेय को चीफ के पद पर बैठाने की हरी झंडी दी गई और श्री राजीव कुमार के सेवानिवृत्ति के तीन दिन पहले ही नियुक्ति पत्र जारी कर दिया गया।

ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है जब व्यवहारिक रूप से तीन दिन पहले ही किसी वरिष्ठ अधिकारी को रिटायर कर दिया गया हो, कहने को तो पाण्डेय जी को चाज॔ 30 जून के बाद ही मिलेगा लेकिन बधाईयों का तांता शुरू हो गया है और राजीव कुमार भी तीन दिन पहले ही अपने को असहज महसूस करने लगे है।
डॉक्टर अनूप चन्द्र पाण्डेय योगी जी की पहली पसंद के अधिकारी है उनकी साफ सुधरी छवि है, मृदुभाषी है चंडीगढ़ पंजाब के मूल निवासी है तथा 1984 बैच के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी है । उनकी नियुक्त पर मै उनके सफल काय॔ काल के लिए बधाई देता हूँ।
लेकिन यहाँ पर कुछ च॔चा करना समाचीन होगा, पारदर्शिता, निष्पक्षता, का दावा करने वाली सरकार के पास इसका कोई औचित्य पूण॔ एवं तक॔ संगत जवाब नही है कि उनके द्वारा वर्ष 81, 82, 83 तथा 84 बैंच के 16 अधिकारी जो डॉ अनूप चन्द्र पाण्डेय से वरिष्ठ है उनकी वरिष्ठता को नाकारते हुए इतने कनिष्ठ अधिकारी को मुख्य सचिव के पद पर तैनात किया गया है।
कनिष्ठ अधिकारियों को सदैव इस लिए तैनाती नही दी जाती है कि उससे वरिष्ठ अधिकारी नाकारा प्रवृति के है बल्कि कनिष्ठ अधिकारी को वरिष्ठ के ऊपर तभी तैनात किया जाता है जब वह तैनात करने वाले आंका के इशारे पर बिना गुण दोष का विचार किए आंख मुंद कर आदेश जारी करने को तैयार रहे।
कनिष्ठ अधिकारी की तैनाती से जहां एक ओर वरिष्ठ अधिकारियो में कुंठा की भावना पनपती है वही दुसरी ओर अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन भी नही कर पाते है जिसका दुष्प्रभाव अन्य संव॔गो पर पड़ता है और शासकीय कार्य प्रणाली पर पड़ता है और जनता को भी गलत संदेश जाता है। यदि आज जनता का विश्वास ब्यूरोक्रेसी और राज नेताओ से उठ रहा है तो उसमें कोई आश्चर्य की बात नही है।
हमारे देश की सुप्रीम कोर्ट में आज भी मुख्य न्यायाधीश राजनेता की मन मर्जी से तय नही होता बल्कि उसकी वरिष्ठता के आधार पर ही मुख्य न्यायाधीश तैनात होता है चाहे उसका काय॔ काल कितना ही अल्प क्यो न बचा हो।
इससे चाटुकारिता की प्रवृत्ति पर रोक लगती है और वरिष्ठता क्रम भी प्रभावित नही होता है। उच्चतम पद पर तैनात अधिकारी तटस्थ होकर अपना काय॔ संपादन करता है क्योंकि उसकी तैनाती में किसी की भूमिका या योगदान नही होता है।
इस लिए ब्यूरोक्रेसी के भी सर्वोच्च पदो पर भी वरिष्ठता के आधार पर तैनात किया जाना स्वस्थ, स्वच्छ, पारदर्शी एवं निष्पक्ष व्यवस्था होगी, यदि किन्ही अपरिहार्य कारणो से वरिष्ठ अधिकारी को तैनात किया जाना सम्भव न हो तो उसके कारणो को जनता के सामने स्पष्ट करना उचित होगा ताकि निष्पक्षता का संदेश समाज में जा सके।
कनिष्ठ अधिकारी की तैनाती का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह होता है कि कनिष्ठ अधिकारी के समक्ष वह समस्त वरिष्ठ अधिकारी जिन्हे सुपरसीट किया गया है अपने कनिष्ठ अधिकारी के सम्मुख बैठको में भाग लेने से बचते है। ऐसे में वरिष्ठ अधिकारी प्रदेश छोड़ने को मजबूर होते है।
वेहतर होता किसी प्रकार का (जातिवाद) का संतुलन साधने के बजाए वरिष्ठता एवं ऊर्जा वान काय॔ प्रणाली को ही उच्चतम पद पर तैनाती का मानक मानना एवं उसे स्थापित करना प्रदेश हित में होगा। आई ए एस एशोसियेशन यदि अपने को सर्वोच्च मानता है तो सत्य की लड़ाई लड़ना चाहिए?

Leave A Reply

Your email address will not be published.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More