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लिटरेरी एक्सीलेंस अवॉर्ड से यूएई में सम्मानित हुईं डॉ.अंजना सिंह

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  • दुबई में आयोजित आठवें एशियाई साहित्य सम्मेलन में मिला सम्मान
  • प्रथम लखनऊ आगमन पर पत्रकारों से साझा कीं दुबई की यादें
लखनऊ। सदाकत का शुजाअत का मैं झंडा लेके आई हूं। इलाहाबादी हूं, सांसों में गंगा लेके आई हूं। वतन से प्यार करने का मेरा जज्बा निराला है। मैं अपने दिल की धड़कन में तिरंगा लेके आई हूं। जैसी पंक्तियां लिखकर सुर्खियां बटोरने वाली शहर की कवियत्री डॉ. अंजना सिंह सेंगर को यूईए के दुबई में सम्मानित किया गया।
अवॉर्ड लेकर लखनऊ वापस लौटीं अंजना ने बताया कि दुबई में कवियों के भी बेहद कद्रदान हैं। अब तक माना जाता रहा है कि खाड़ी देशों में सिर्फ शायरों को सराहा जाता रहा है। हकीकत में ऐसा नहीं, कविताओं को भी शिद्दत से पसंद किया जाता है।
गोमतीनगर के विनीतखंड निवासी साहित्यकार डॉ. अंजना सिंह सेंगर ने बताया कि यूईए के दुबई में आयोजित आठवें एशियाई साहित्य महोत्सव के दौरान एशियाई लिटरेसी अवॉर्ड प्रदान किया गया। आयोजन के मुख्य अतिथि भारत के वाणिज्यिक दूत डॉ. विपुलजी ने डॉ. अंजना सिंह सेंगर को भारत निर्माण लिटरेरी एक्सलेंसी अवॉर्ड देकर शहर का मान बढाया।
आठवें एशियाई साहित्य महोत्सव का आयोजन दिल्ली की संस्था भारत निर्माण और भारतीय वाणिज्यिक दूतावास के सहयोग से किया गया था। उन्होंने बताया कि उनको यह सम्मान मिलना राजधानी के साथ ही प्रदेश के लिए भी गौरव की बात है। क्योंकि डॉ. अंजना सिंह उत्तर प्रदेश कैडर के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी चंद्रभूषण सिंह की पत्नी भी हैं।
डॉ. अंजना ने बताया कि एशियाई साहित्य महोत्सव में तीन भारतीय साहित्यिक प्रतिभाओं को अवॉर्ड प्राप्त हुआ। उनमें वो सबसे उदीयमान साहित्यकार के तौर पर शामिल रहीं। दुबई के कार्यक्रम में भारतीय और दुबई दोनों समूहों के लोग थे। मुझे भारतीय होने के नाते श्रोताओं का अतिरिक्त स्नेहाशीष प्राप्त हुआ। भारत के लिए यह गौरवपूर्ण क्षण था।
साहित्य सृजन का अद्भुत जुनून : डॉ. अंजना ने बताया कि मैंने पहली कविता 1992 में ‘साम्यवाद को श्रद्धांजलि’ शीर्षक से लिखी थी। तबसे साहित्य सृजन का कुछ ऐसा जुनून चढ़ा कि बस इसमें रम गई। इसके चलते सरकारी सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेनी पड़ी। साहित्य सृजन में परिवार का पूरा सहयोग रहता है। कई बार तो पति के साथ नोक-झोंक में भी कविता और ग़ज़ल के विषय मिल जाते हैं।
बच्चों में अद्भुत उत्साह था : अवॉर्ड लेने के दौरान मेरे दोनों बच्चे सबसे अधिक खुश थे। मंच पर जाते समय वो दोनों खड़े होकर तालियां बजाते हुए खुशी से झूम रहे थे। साहित्य सृजन में परिवार का बहुत बड़ा योगदान है, बगैर परिवारोजनों के सहयोग के इतनी व्यस्त जिंदगी में कुछ अतिरिक्त कर पाना संभव नहीं था। परिवार का साथ ही साहित्य सृजन में संबल बना।
तीन किताबें हो चुकीं हैं प्रकाशित : अंजना ने बताया कि उनकी अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। पहली पुस्तक ‘मन के भाव’ काव्य संग्रह है। दूसरा काव्य संग्रह ‘जुगनू की जंग’ प्रकाशित हो चुका है। तीसरी पुस्तक ऊर्दू ग़ज़ल संग्रह ‘ज़ुस्तजू’ अभी प्रकाशनाधीन है। इसके अलावा देश भर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी कविताएं प्रकाशित होती रही हैं।
द्रोपदी पर खंडकाव्य लिखने की योजना : डॉ. अंजना सिंह ने बताया कि उनकी आगामी योजना द्रोपदी पर खंडकाव्य लिखने की है। पांडवों के अज्ञातवास के दौरान द्रोपदी का छद्दम नाम सारिन्ध्री रहा है। इस दौरान द्रोपदी के मनोभावों का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पुनर्पाठ करने की योजना है। द्रोपदी की इस भूमिका को अक्सर लोगों को जानकारी नहीं है। स्त्री विमर्श का यह एक अनुछुआ पहलू है।
कविता ला सकती है बदलाव : आधुनिकता की चकाचौंध में युवा पीढ़ी बदहवास हो चुकी है। कविता भटकी जिंदगी में भी बदलाव ला सकती है। वर्तमान समय वास्तविक कहानियों का दौर है। युवाओं की प्रेरणा के लिए कविता संग्रह लिखने की तैयारी चल रही है। किसान समस्याओं और उनके समाधान पर 26 दोहों का एक संग्रह लिखा है। जिसे अभी प्रकाशित होने के लिए जाना है।
पढ़ने पर सोशल मीडिया का प्रभाव : सोशल मीडिया ने नई पीढ़ी को स्पीड दे दी है। लोगों का पुस्तकालय जाना बंद हो गया है। मूल्यों की स्थिरता कमजोर हो रही है। धीरज, धर्म और मित्र के बीच टकराव के आसार को कविता सकारात्मक कर सकती है। मेरी कविताओं में निगेटिव कम है पॉजिटिव ज्यादा है। आधुनिक कविता के नाम पर बड़ी गड़बड़ हो रही है।
दुबई कई मायनों में है बेहद ख़ास : दुबई शहर कई मायनों में बेहद खास है। शायरों की ही नहीं कवियों की भी कद्र करता है दुबई। यहां के शहरों में महिलाएं ज्यादा सुरक्षित हैं। यहां नियमों को तोड़ने वाले न के बराबर मिलेंगे। क्योंकि हर व्यक्ति को पता है कि नियम तोड़ेगा तो उसके ख़िलाफ़ कठोर कार्यवाही की जाएगी। पहनावे, चाल-चलन और खानपान देखकर नहीं लगता कि यूईए एक मुस्लिम राष्ट्र है।

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