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गगन स्तब्ध, जगत मौन, सभी दिशा उजियारी, नहीं रहा माँ भारती का प्रिय पुजारी

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स्पर्श दीक्षित (लेखक टी टाइम्स ग्रुप के विशेष संमवाददाता है)

बिहारी अटल के शव पर भारत माता रोई है, क्योंकि उसने अपनी ज्वलंत प्यारी मडी खोई है…


अंधकार में थी एक चिंगारी, 
आज शोकाकुल है दुनिया सारी, 
अब जा रहे 
अटल बिहारी, 
अब जा रहे अटल बिहारी। 

न जयते, म्रिय्ते व, कदाचिन्नयम भूतवा, भविता, वानो भू यहां अजो नीत्यहा शाश्वतोयम पुराणम न हन्यते हन्यमने शरीरे


भारतीय राजनीति की अगर बात की जाये तो श्री अटल बिहारी बाजपेई एक ऐसा नाम है जो भारतीय राजनीति की किताब में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। वे एक कुशल राजनीतिज्ञ, कवि एवम प्रशासक थे।

उन्होंने हर  विषम परिस्थितियों और चुनौतियों को स्वीकार किया. जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बाद भी अपने को संयमित रखा. राजनीति में विरोध होना कोई आश्चर्य का विषय नहीं है लेकिन विरोधी भी उनकी कार्यशैली के कायल थे।.उन्होंने पोखरण परीक्षण करवा के भारतिय शक्ति का एहसास सभी विरोधी मुल्कों को करवाया।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसम्बर 1924 को हुआ था. उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी शिक्षक थे. उनकी माता कृष्णा जी थीं. वैसे मूलत: उनका संबंध उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के बटेश्वर गांव से है लेकिन, पिता जी मध्य प्रदेश में शिक्षक थे. इसलिए उनका जन्म वहीं हुआ।

लेकिन, उत्तर प्रदेश से उनका राजनीतिक लगाव सबसे अधिक रहा. प्रदेश की राजधानी लखनऊ से वे सांसद रहे थे। अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी राजनीतिक कुशलता से भाजपा को देश में शीर्ष राजनीतिक सम्मान दिलाया।
वे एक कवि के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहते थे. लेकिन, शुरुआत पत्रकारिता से हुई. पत्रकारिता ही उनके राजनैतिक जीवन की आधारशिला बनी। उन्होंने संघ के मुखपत्र पांचजन्य, राष्ट्रधर्म और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादन किया। 1957 में देश की संसद में जनसंघ के सिर्फ चार सदस्य थे जिसमें एक अटल बिहारी वाजपेयी भी थे। संयुक्त राष्ट्र संघ में उंहोंने पहली बार हिंदी में भाषण दिया जिससे हिंदी का सम्मान पूरे भारत में बढा।
जब 1955 में उन्होंने ने  पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा तब उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा लेकिन बाद में 1957 में गोंडा की बलरामपुर सीट से जनसंघ उम्मीदवार के रूप में जीत कर लोकसभा पहुंचे।

एक समय ऐसा जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपाताकाल घोषित किया और इससे विपक्ष एक हो गया जिसके बाद मोरारजी देसाइ जी की सरकार में उनको विदेश मंत्री बनाया गया और उन्होंने अपनी कार्यशैली से गहरी छाप छोड़ी, तब उनका एक नारा बड़ा प्रचलित हुआ की आपाताकाल के सघन अंधेरे में जनसंघ का दीपक रौशनी का केंद्र था लेकिन सूर्य निकलने आया है अब दीपक बुझने का वक्त आया है।
कोंकण रेल सेवा एवम एवम गांवों को मुख्य सड़कों से जोड़ने का काम भी उन्हीं के द्वारा किया गया। आज राजनीती का वो नगीना हमारे बीच नही है लेकिन उनकी स्मृति शेष है, आज एक तरफ बुज़ुर्ग पीढ़ी नम आंखों से उनको विदाई दे रही है तो दूसरी तरफ युवा उनके द्वारा बताये पथ पर चलने के लिये संकल्पित है।

ऐसे तेजस्वी भारत माँ के लाल को शत शत नमन 

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