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चीनी मिलों के बंद होने से करीब 25 हजार लोग हुए बेरोजगार

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लखनऊ। जिले में 9 चीनी मिलें थीं। बाद में ढाढा चीनी मिल स्थापित हुई। पहले से जो 9 चीनी मिलें थी, उनमें छितौनी, लक्ष्मीगंज, रामकोला खेतान, पडरौना और कठकुइयां की चीनी मिलें एक-एक कर बंद होती गईं। चीनी मिलों के बंद होने से करीब 25 हजार लोग बेरोजगार हो गए। जिले में विकास की रफ्तार मंद पड़ गयी।
पिछले लोकसभा चुनाव में पडरौना चीनी मिल प्रमुख चुनावी मुद्दा बना था। पीएम नरेन्द्र मोदी ने भी चुनावी रैली में पडरौना चीनी मिल का जिक्र किया था। इस बंद चीनी मिल की कई बार नीलामी हुई, लेकिन कोई खरीददार ही नहीं मिल रहा है।
वर्ष 1994 में देवरिया जनपद से अलग होने के बाद अस्तित्व में आये कुशीनगर जिले के हिस्से में कुल नौ चीनी मिलें आईं थीं। इनमें सेवरही, कठकुइयां, पडरौना, रामकोला खेतान, रामकोला पंजाब, लक्ष्मीगंज, कप्तानगंज, खड्डा और छितौनी चीनी मिलें थी।बाद में एक चीनी मिल ढाढ़ा-हाटा में स्थापित हुई।
मौजूदा समय में सेवरही, रामकोला पंजाब, कप्तानगंज, खड्डा और ढाढ़ा की चीनी मिलें ही पेराई कर रही हैं। चालू हालत की सभी चीनी मिलें प्राइवेट सेक्टर की हैं। केन्द्र सरकार में कपड़ा मंत्रालय के अधीन रही ब्रिटिश इंडिया कार्पोरेशन (बीआईसी) की कठकुइयां, पडरौना चीनी मिल, कार्पोरेशन की लक्ष्मीगंज, छितौनी और रामकोला खेतान चीनी मिलें वर्ष 1998-99 से बंद हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में पडरौना चीनी मिल का मुद्दा जोर शोर से उठा था। न्यायालय के आदेश पर जिला प्रशासन ने पडरौना चीनी मिल की संपत्तियों की कई बार नीलामी करायी लेकिन कोई खरीदार ही नहीं मिल सका। वहीं नीलामी के बाद कठकुइयां चीनी मिल का सिर्फ ढांचा ही शेष रह गया है।
इन चीनी मिलों के बंद होने से इनमें कार्यरत करीब 9 हजार श्रमिक एवं करीब 15 हजार दैनिक पारिश्रमिक वाले मजदूरों के हाथों से रोजगार छीन गयी। चीनी मिलें चलने पर हमेशा गुलजार रहने वाले जगह पर आज वीरानी छायी हुई है। चीनी मिलों के अब चलने की नाउम्मीद में इन बाजारों के व्यापारी भी दूसरे जगहों पर पलायन कर रहे हैं।

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